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________________ बुद्धत्व को अवधारणा : १४३ है, उसकी इस लोकानुकम्पा की भावना का उल्लेख हमें पालिनिकाय से लेकर परवर्ती महायान साहित्य तक सभी में मिलता है।' (घ) तुलना उपयुक्त तीनों आदर्शों में एक अन्तर स्थापित किया गया है । यदि हम लोकमंगल की दृष्टि से देखें, जहाँ बुद्ध और बोधिसत्व का लक्ष्य अपनी दुःख-विमुक्ति के साथ ही साथ संसार के प्राणियों की दुःख विमुक्ति भी है वहाँ अर्हत् और प्रत्येक-बुद्ध मात्र अपनी दुःख-विमुक्ति का प्रयत्न करते हैं । यद्यपि उपरोक्त दृष्टिकोण के आधार पर अर्हत् और प्रत्येक-बद्ध दोनों ही समान प्रतीत होते हैं किन्तु इन दोनों में एक महत्वपूर्ण अन्तर भी रहा है। अर्हत् पथ का साधक बुद्ध के उपदेशों से प्रेरित होकर स्व-दुःख विमुक्ति और निर्वाण लाभ को प्राप्त करता है जब कि प्रत्येक-बद्ध स्वयं ही अपनी साधना द्वारा बोधि को प्राप्त करते हैं। इस प्रकार जो बुद्ध के उपदेश से बोधि को प्राप्त होता है वह अईत् कहलाता है और जो स्वयं ही बोधि को प्राप्त होते हैं, वे प्रत्येकबद्ध कहलाते हैं । पुनः अर्हत् संघ के अनुशासनों में रहकर ही साधना करता है, और बोधि लाभ प्राप्त करता है तथा अर्हत् अवस्था प्राप्त करने के बाद भी संघ जीवन में रहता है जबकि प्रत्येक-बद्ध का संघ-व्यवस्था एवं संघीय जीवन से कोई सम्बन्ध नहीं होता है। वह एकाकी ही साधना करता है और स्वयं बोधि लाभ प्राप्त करके भी एकाकी जीवन जीता है। जैनपरम्परा में भी इन तीनों के समान स्वयं-सम्बुद्ध, प्रत्येक बुद्ध और बुद्ध-बोधित ऐसे तीन स्तर माने गये हैं, जिसका तुलनात्मक विवेचन हम अगले अध्यायों में करेंगे । बुद्धों के प्रकार--अतीतबुद्ध, वर्तमानबुद्ध और अनागत या भावीबुद्ध बौद्ध साहित्य में २४ बुद्धों की अवधारणा को बुद्धवंश में अतीत बुद्ध कहा गया है। बुद्धवंश में पूर्ववर्ती २४ बुद्धों की जीवनी पौराणिक ढंग से १. (अ) महावग्ग, (१.१०.३२), पृ० २३ (ब) सद्धर्मपुण्डरीक, पृ० १९; उद्धृत-मध्यकालीन साहित्य में अवतारवाद पृ० २८ २. महायान, पृष्ठ १९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002127
Book TitleTirthankar Buddha aur Avtar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshchandra Gupta
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1988
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size14 MB
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