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________________ १४२ : तीर्थंकर, बुद्ध और अवतार : एक अध्ययन संघ में ही रहता है और संघीय अनुशासन में रहकर साधना करते हुए अन्त में निर्वाण प्राप्त करता है । (ख) प्रत्येक बुद्ध प्रत्येक बुद्ध को मौन बुद्ध की संज्ञा भी दी जा सकती है क्योंकि चुल्लनिदेश में कहा गया है कि ऐसे बुद्ध अनाचर्यक भाव से प्रत्येक सम्बोधि को प्राप्त करने के बाद भी धर्मोपदेश नहीं करते हैं ।" वे स्वयं मुक्त होते हैं पर जनसमूह की मुक्ति के लिए धर्मशासन की स्थापना नहीं करते हैं तथा विमुक्ति सुख में रहकर एकान्त विहार करते हैं । कल्याण के लिए और अर्हतु में सम्यक् दृष्टि या बोध को वे पुरुष जो अपना ही कल्याण करते हैं दूसरों के प्रयत्न नहीं करते प्रत्येक बुद्ध कहलाते हैं । प्रत्येक बुद्ध अन्तर यह होता है कि अर्हत् बुद्धादि शास्ता के उपदेश से को प्राप्त करता है, वहाँ प्रत्येक बुद्ध स्वयं ही सम्यक दृष्टि प्राप्त करते हैं । प्रत्येक बुद्ध का आदर्श अर्हत् के आदर्श से श्रेष्ठ होता है क्योंकि प्रत्येक-बुद्ध प्रतीत्यसमुत्पाद की साधना के द्वारा स्वयं बुद्धत्व को प्राप्त कर लेता है । वह अपना दुःख स्वयं दूर कर लेता है परन्तु वह दूसरों के दुःख दूर करने का प्रयत्न नहीं करता है । अतः उसका आदर्श अर्हत् के आदर्श से श्रेष्ठ होते हुए भी बुद्ध के आदर्श से भिन्न होता है । (ग) सम्यक् - सम्बुद्ध या बुद्ध अर्हत् और प्रत्येक बुद्ध की अपेक्षा बुद्ध या सम्यक सम्बुद्ध का आदर्श श्रेष्ठ होता है क्योंकि वे अनुत्तर सम्यक् - - सम्बोधि प्राप्त कर विश्व कल्याण की भावना रखते हैं । गोपीनाथ कविराज का कहना है कि ( मात्र ) वलेशावरण तथा ज्ञेयावरण के निवृत्त होने से बुद्धत्व लाभ नहीं होता है | श्रावक (अर्हत् ) और प्रत्येक बुद्ध का भी पूरा द्वैतभाव समाप्त नहीं होता है। केवल सम्यक् - सम्बुद्ध ही द्वैतभाव से निवृत्त होता है । क्योंकि बुद्ध में अपने और पराये का भाव नहीं होता है । वे अनन्त ज्ञान और करुणा के भण्डार हैं । सम्यक् - सम्बुद्ध या बोधिसत्व का लक्ष्य स्वदुःख की निवृत्ति न होकर परार्थ भावना या निरन्तर जीव सेवा करना १. “ एवं सो पच्चेक -सम्बुद्धो एको अनुत्तरं पच्चेक - सम्बोधि अभिसम्बुद्धो वि एको ।" - खुद्दकनिकाय भाग ४ (२), चुल्ल निदेश, (३.८.१), पृ० २४६ २. बौद्ध धर्म दर्शन - भूमिका, पृ० २४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002127
Book TitleTirthankar Buddha aur Avtar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshchandra Gupta
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1988
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size14 MB
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