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________________ बुद्धत्व को अवधारणा : १४१ शान्तिदेव के अनुसार बोधिचित्त के उत्पाद के लिए बुद्ध, सद्धर्म तथा बोधिसत्व की आराधना आवश्यक है ।' बोधिचित्त ही सब पापों को समूल नष्ट करने का एक आधार है । यह उस कल्पवृक्ष के समान है जो मनोवांछित फल देने में सक्षम होता है । आर्यगण्डव्यूहसूत्र में भगवान्. अजित ने कहा है कि बोधिचित्त ही सब बुद्ध धर्मों का बीज है । "बोधिचित्तं हि कुलपुत्र बीजभूतं सर्वबुद्धधर्माणाम् । ” अतः हम कह सकते हैं कि महायान सम्प्रदाय में बुद्धत्व की प्राप्ति का मूलाधार बोधिचित्त है। क्योंकि बोधिचित्त का उदय होते ही प्राणी के अन्दर करुणाभाव की अनुभूति होने लगती है । यही करुणाभाव बुद्धत्व प्राप्ति का आवश्यक तत्त्व है, इस तरह बोधिचित्त का उत्पाद ही बोधिसत्व होने अथवा बुद्धत्व को प्राप्त करने का मूलाधार है । अर्हत्, प्रत्येक-बुद्ध और बुद्ध के आदर्श बौद्ध धर्म में साधक जीवन के तीन आदर्श होते हैं - अर्हत्, प्रत्येकबुद्ध और सम्यक् सम्बुद्ध या बुद्ध । यहाँ हम अलग-अलग तीनों आदर्शों के बारे में विचार करेंगे । बोद्ध धर्म में पूर्वापेक्षया परपद श्रेष्ठ माना गया है । इन तीनों ही आदर्शों का मुख्य ध्येय दुःख से निवृत्त होकर निर्वाण लाभ प्राप्त करना रहा है। ( क ) अर्हत् वे साधक जिनके हृदय में अपनी दुःख-विमुक्ति के लिए स्वयं ज्ञान या बोध का उदय नहीं होता है बल्कि बुद्धादि शास्ताओं के उपदेशों से ज्ञान प्राप्त होता है । वे बुद्ध के उपदेशों से प्रेरित होकर साधना करते हैं और तृष्णा का उच्छेदकर दुःख-विमुक्त हो अर्हत पद प्राप्त करते हैं और अन्त में निर्वाण प्राप्त करते हैं । अर्हत् पद के साधक का लक्ष्य स्वयं की मुक्ति प्राप्त करना होता है, दूसरे प्राणियों के दुःख दूर करने के लिए वह कोई भी प्रयत्न नहीं करता है और न ही लोक-कल्याण के लिए उपदेश ही देता है । अर्हत् अवस्था को प्राप्त करने के बाद भी साधक १. अपुण्यवानस्मि महादरिद्रः पूजार्थमन्यन्मम नास्ति किञ्चित् । अतो ममार्थाय परार्थंचित्ता गृहन्तु नाथा Jain Education International इदमात्मशक्त्या ॥ - बोधिचर्यावतार, २/७ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002127
Book TitleTirthankar Buddha aur Avtar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshchandra Gupta
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1988
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size14 MB
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