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१३८ : तीर्थंकर, बुद्ध और अवतार : एक अध्ययन
इसी भूमि में बोधिसत्त्व शान्ति पारमिता का अभ्यास करता है । यह अधि-चित्त शिक्षा है । इस भूमि का लक्षण ध्यान की प्राप्ति है। इससे अच्युत समाधि का लाभ होता है ।
३. प्रभाकरी
इस भूमि में साधक समाधि के द्वारा अनेकानेक धर्मों का साक्षात्कार कर लोकहित के लिए बोधि-पक्षीय धर्मों की परिणामना करता है अर्थात् वह बुद्ध का ज्ञानरूपी प्रकाश लोक में फैलाता है इसी कारण इस भूमि को प्रभाकरी कहा गया है ।
४. अर्चिष्मती
इस भूमि में साधक क्लेशावरण और ज्ञेयावरण का विनाश करता है और वीर्य पारमिता का अभ्यास करता है ।
५. सुदुर्जया
इस भूमि में साधक दूसरों के धार्मिक विचारों को पुष्ट करता है और स्वचित्त की रक्षा के लिए दुःख पर विजय प्राप्त करता है । यह कार्य अति दुष्कर है इसी से इस भूमि को "दुर्जया " कहा गया है। इस भूमि में प्रतीत्यसमुत्पाद के साक्षात्कार के कारण भवापत्ति (ऊर्ध्वलोकों में उत्पत्ति को आकांक्षा) विषयक संक्लेशों से रक्षा हो जाती है । इस भूमि में बोधिसत्त्व ध्यान - पारमिता का अभ्यास करता है |
६. अभिमुखी
इस भूमि में बोधिसत्त्व या साधक प्रज्ञा पारमिता के आश्रय से संसार और निर्वाण- दोनों के प्रति अभिमुख रहता है । उसमें यथार्थ प्रज्ञा का उदय होता है और उसके लिए संसार और निर्वाण में कोई अन्तर नहीं रहता । अब संसार उसके लिए बन्धक नहीं रहता । इसमें साधक निर्वाण की दिशा में अभिमुख होता है इसी से इस अवस्था को अभिमुखी भूमि कहा जाता है । चौथी और पाँचवीं भूमि में वह प्रज्ञा का अभ्यास करता है किन्तु इस भूमि में प्रज्ञा को पूर्णता को प्राप्त हो जाता है ।
७. दूरंगमा
बोधिसत्व इस भूमि में शाश्वतवाद और उच्छेदवाद अर्थात् एकांतिक मार्ग से बहुत दूर चला जाता है और बोधिसत्त्व की साधना पूर्ण कर निर्वाण लाभ के योग्य हो जाता है। इस भूमि में बोधिसत्त्व संसार के.
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