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________________ बुद्धत्व को अवधारणा : १३७ है । महायान सम्प्रदाय के ग्रन्थ "दसभूमिशास्त्र" में बुद्धत्व को प्राप्त करने की निम्न दस अवस्थायें (भूमियाँ) बतलाई गई हैं' - १- प्रमुदिता, २ - विमला, ३ - प्रभाकरी, ४- अर्चिष्मती, ५ - सुदुर्जया, ६ - अभिमुक्ति, ७- दूरंगमा, ८ - अचला, ९ - साधुमती, १० - धर्ममेधा । असंग के महायानसूत्रालंकार और लंकावतार में ११ भूमियों का उल्लेख मिलता है । महायानसूत्रालंकार और लंकावतार में अधिमुक्ति चर्याभूमि को प्रथम भूमि की संज्ञा दो गई है उसके बाद प्रमुदिता भूमि अन्तिम धर्ममेधा या बुद्ध भूमि तक को परिगणना से ११ भूमियों की संख्या पूर्ण की गई है । इसी प्रकार लंकावतारसूत्र में धर्ममेधा और तथागत ( बुद्ध ) भूमियों को अलग-अलग माना गया है । अधिमुक्तचर्या भूमि असंग का कथन है कि अधिमुक्तचर्याभूमि में साधक को पुद्गल नैरात्म्य और धर्म नैरात्म्य का यथार्थ ज्ञान होता है और यह अवस्था विशुद्धि की अवस्था कही जाती है । बौद्ध धर्म में इसे बोधिप्रणिधिचित्त की अवस्था भी कहा जाता है । इसी भूमि में बोधिसत्व दान- पारमिता का अभ्यास करता है । यह बुद्धत्व की दिशा में साधना का पूर्व चरण है । इसके आगे निम्न दस भूमियाँ मानी गई हैं १. प्रमुदिता इसमें शोल की शिक्षा होती है । अर्थात् यह शील विशुद्धि के प्रयास की अवस्था है । बोधिसत्त्व इस भूमि में लोकमंगल की साधना करता है और यह अवस्था बोधिप्रस्थानचित्त की अवस्था कही जा सकती है । - बोधिप्रणिधिचित्त में मार्ग का बोध होता है तो बोधिप्रस्थानचित्त में मार्ग में गमन की प्रक्रिया का । इस भूमि में साधक शील- पारमिता का अभ्यास करता है और अपने शील को विशुद्ध कर सूक्ष्म से सूक्ष्म अपराध करने से विरत रहता है । इस प्रकार पूर्ण शील विशुद्धि की अवस्था प्राप्त कर अग्रिम विमला भूमि में प्रविष्ट हो जाता है । २. विमला इस अवस्था में साधक अनैतिक आचरण से पूर्णतया मुक्त हो जाता है । इसमें विकार पूर्णरूपेण विनष्ट हो जाते हैं, इसी कारण इसको विमला कहते हैं । यह अवस्था आचरण के पूर्ण शुद्धि की अवस्था कहलाती है और १. उद्धत - बौद्ध धर्म के विकास का इतिहास, पृ० ३६०-३६२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002127
Book TitleTirthankar Buddha aur Avtar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshchandra Gupta
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1988
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size14 MB
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