SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 150
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ग्रन्थों के अनुसार सुमेध तपस्वी ने इन सभी धर्मों का पालन कर बुद्धत्व प्राप्त किया था · " सुमेधतापसो पन इमे अट्ठ धम्मे समोधानेत्वा बुद्धभावाय अभिनीहारं कत्वा निपज्जि ।” छः अध्याशय नेक्ख मज्झाय बुद्धत्व की अवधारणा : १३३ संयुत्तनिकाय अट्ठकथा' में कहा गया है कि बोधिसत्व को आठ धर्मों के अतिरिक्त चार बुद्ध-भूमियों तथा छ: अध्याशयों को प्राप्त करना भी आवश्यक है । ९. चार भूमियाँ "उस्साह, उम्मग्ग, अवत्थान तथा हितचरिया" को क्रमशः वीर्य, प्रज्ञा, अधिष्ठान तथा मैत्री भावना भी कह सकते हैं | पविवेकज्झासय अलोभज्झासय rateज्झाय अमोहज्झासय निस्सरण झासय Jain Education International (निष्क्रम अध्याशय) ( प्रविवेक अध्याशय) (अलोभ अध्याशय) ( अद्वेष अध्याशय) ( अमोह अध्याशय) (निःसरण अध्याशय) जातक में बुद्धत्व प्राप्ति के लिए बोधिसत्व के लिए तीन चर्याओं ( जातत्थ, लोकत्थ, भूतत्थ ) तथा स्त्री, पुत्र, राज्य, अंग, जीवन - परित्याग विषयक पाँच महात्याग भी आवश्यक बताये गये हैं । इस प्रकार बुद्धत्व प्राप्त करने के लिए उपरोक्त गुणों का होना आवश्यक बताया गया है । १०. अर्हस्व एवं बुद्धत्व की प्राप्ति के उपाय बौद्ध परम्परा में अर्हत्व एवं बुद्धत्व को प्राप्त करने के लिए साधक को कुछ अवस्थाओं या सोपानों से गुजरना पड़ता है । आध्यात्मिक विकास की इन अवस्थाओं को बौद्ध धर्म में भूमियाँ कहा गया है। इन भूमियों की मान्यता को लेकर बौद्ध धर्म के सम्प्रदायों में मत वैभिन्न्य है । १. संयुत्त निकाय अट्ठकथा १ - ५०, उद्धृत - निदानकथा, भूमिका पृ० ३९ । २. जातक सं० ५५२, उद्धृत -- निदानकथा ( डॉ० महेश तिवारी ) -- भूमिका, पृ० ४० 1, For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002127
Book TitleTirthankar Buddha aur Avtar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshchandra Gupta
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1988
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy