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________________ १३२ : तीर्थंकर, बुद्ध और अवतार : एक अध्ययन का आलम्बन एक रहता है, केवल ध्यानांगों का ही समतिक्रमण होता है। अभिधर्म के अनुसार पाँच रूपावचर ध्यान कहे गये हैं । अरूप - समाधि की भी चार अवस्थायें होती हैं, जिन्हें चार अरूपा - वचर ध्यान कहा जाता है - आकाशानन्त्यायतन, विज्ञानानन्त्यायतन, आकिञ्चन्यायतन एवं नेवसंज्ञानासंज्ञायतन । ध्यान की इन चारों अवस्थाओं में उपेक्षा तथा एकाग्रता नामक दो ध्यानांग रहते हैं । इस कारण अरूपावचर के सभी ध्यान पंचम ध्यान कहे जाते हैं । यहाँ प्रत्येक ध्यान का आलम्बन भिन्न-भिन्न रहता है। प्रथम ध्यान में अनन्त आकाश विषय रहता है । द्वितीय ध्यान का लाभ अनन्त - विज्ञान पर होता है। आकिंचन्य ही तृतीय ध्यान का आलम्बन है तथा इसी विषय को शान्त रूप में करते हुए चतुर्थ ध्यान का लाभ होता है । मनन अस्तु चार रूप ध्यान तथा चार अरूप ध्यान को अट्ठ-समापत्ति कहते हैं । ७. अधिकार 1 अधिकार शब्द से तात्पर्य शक्ति या बल है । यह माना गया है कि बुद्ध वही व्यक्ति हो सकता है जिसमें अपार शक्ति या बल हो । जैन परंपरा में भी तीर्थङ्कर को अपार शक्ति से युक्त माना गया है । यद्यपि यहाँ शक्ति आन्तरिक या चैतसिक शक्ति का ही परिचायक है, फिर भी दोनों परम्पराएँ यह स्वीकार करती हैं कि बुद्ध या तीर्थङ्कर अपने शरीर की शक्ति से अनन्त बली होते हैं। हिन्दू परम्परा में भी अवतार को, चूँकि वह ईश्वर का ही रूप है, इसलिए अनन्त शक्ति से सम्पन्न माना जाता है । ८. छन्दता बुद्धत्व प्राप्ति की साधना में लगे व्यक्ति की उसके साधनों के प्रति प्रबल इच्छा, उत्साह, अनवरत प्रयत्न आदि को छन्दता की संज्ञा दी गई है । छन्दता का अर्थं इच्छा स्वातन्त्र्य भी कर सकते हैं । जैन और बौद्ध दोनों परंपरायें यह मानती हैं कि तीर्थङ्कर और बुद्ध नियति के दास नहीं होते । उनमें स्वतंत्र संकल्प शक्ति होती है । यद्यपि जैनपरम्परा में आयुष्य कर्म के सम्बन्ध में तीर्थङ्कर को भी परिवर्तन करने में अक्षम माना गया है । उपरोक्त आठ मूलभूत धर्म Jain Education International बुद्धत्व प्राप्ति के आवश्यक अंग हैं । बौद्ध For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002127
Book TitleTirthankar Buddha aur Avtar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshchandra Gupta
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1988
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size14 MB
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