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________________ १३० : तीर्थकर, बुद्ध और अवतार : एक अध्ययन प्रकार का कोई उल्लेख नहीं है जिसमें तीर्थङ्कर नामकर्म उपार्जन के लिए किसी अन्य तीर्थङ्कर का दर्शन आवश्यक हो । यद्यपि तीर्थङ्कर नामकर्म उपार्जन के लिए जिन २० बोलों का विधान किया गया है, उनमें अरिहन्त की भक्ति को आवश्यक माना गया है। हिन्दू परम्परा में इस प्रकार की कोई अवधारणा हमें ज्ञात नहीं है। ५. प्रवजित होना ____बौद्ध धर्म में बुद्धत्व की प्राप्ति के लिए संन्यासी या प्रनजित होना आवश्यक माना गया है। संन्यासी या गहत्यागी होकर ही बुद्धत्व को प्राप्त किया जा सकता है। जैन परम्परा में तीर्थङ्कर के लिए दीक्षा या संन्यास लेना आवश्यक है । तीर्थङ्करों के पंच कल्याणकों में एक कल्याणक दीक्षा-कल्याणक है। सभी तीर्थङ्कर, तीर्थङ्कर के रूप में जन्म लेने के पूर्व एवं अपने अन्तिम जीवन में संन्यास ग्रहण करते हैं । जहाँ तक हिन्दू परम्परा का प्रश्न है, वहाँ अवतार के लिए संन्यासी होना आवश्यक नहीं है। राम-कृष्ण आदि यावज्जीवन गृहस्थ रहे । कुछ ऐसे अवतार भी हए हैं जिन्होंने यावज्जीवन ब्रह्मचर्य व्रत का पालन किया, जैसे परशुराम, वामन, नारद आदि । हिन्दू-परम्परा के अनुसार अवतार संन्यासी भी हो सकता है और गृहस्थ भी । ६. गुणसम्प्राप्ति गुणसम्प्राप्ति से अभिप्राय पाँच अभिज्ञा तथा आठ समापत्ति से है।' डॉ० महेश तिवारी ने निदानकथा के पारिभाषिक शब्द विवरण अध्याय में अभिज्ञा तथा अटुसमापत्ति की विशद चर्चा की है। अभिज्ञा (अभिज्ञा)-समाधिजनित विशेष प्रज्ञा का नाम अभिज्ञा है। रूप-समाधि में पंचम ज्ञान की पूर्णतः परिपक्वता होने पर कुछ मानसिक शक्तियों का उदय होता है । इसमें चित्त के अत्यधिक सूक्ष्म एवं एकाग्र होने पर आध्यात्मिक ज्ञानविशेष की उपलब्धि होती है। यह पाँच प्रकार की कही जाती है । यथा___"इद्धिविधं दिब्बसोतं, परिचित्तविजाननं । .. पुब्बेनिवासानुस्सति, दिब्बचक्खू ति पञ्चधा ॥" एक से अनेक होना, अनेक से पुनः एक होना, जल में चलना, पृथ्वो में जल की भाँति गोता लगाना, आकाश में उड़ना आदि आश्चर्यजनक १. उद्धृत-निदानकथा (हरिदास संस्कृत ग्रंथमाला), पृ० २३७-२३९ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002127
Book TitleTirthankar Buddha aur Avtar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshchandra Gupta
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1988
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size14 MB
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