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________________ बुद्धत्व की अवधारणा : १२९ नहीं बताया गया है। जैन धर्म में भी तीर्थकरत्व को प्राप्त करने के लिए मनुष्य जन्म ग्रहण आवश्यक माना गया है। जैन और बौद्ध दोनों ही मानते हैं कि केवल मनुष्य ही तीर्थंकर अथवा बुद्धत्व पद का अधिकारी हो सकता है। जहाँ तक हिन्दू धर्म का प्रश्न है इसमें भी मोक्ष की प्राप्ति के लिए मनुष्य जन्म आवश्यक माना गया है किन्तु भगवान् के अवतार ग्रहण करने के लिए किसी भी योनि का बन्धन नहीं। वे मनुष्य, पशु, अर्धमनुष्य, अर्ध-पशु अथवा देव किसी रूप में भी अवतरित हो सकते हैं। २. पुरुष-लिंगी बौद्ध धर्म में बुद्धत्व को प्राप्त करने के लिए मनुष्य जन्म के साथसाथ पुरुषलिंग अर्थात् पुरुष के रूप में जन्म ग्रहण करना आवश्यक माना गया है । बौद्ध धर्म के अनुसार नपुंसक या स्त्रियाँ बुद्धत्व की अधिकारी नहीं । इस सम्बन्ध में दिगम्बर जैन सम्प्रदाय और बौद्ध दोनों समान मत रखते हैं । जैनों के दिगम्बर सम्प्रदाय के अनुसार केवल पुरुष ही तीर्थङ्कर पद का अधिकारी हो सकता है। श्वेताम्बर परम्परा न केवल स्त्रियों और नपुंसकों को मुक्ति का अधिकारी मानती है अपितु यह.भी मानती है कि स्त्री तीर्थकर पद की अधिकारी हो सकती है। उनके अनुसार १९ वें तीर्थङ्कर मल्लि स्त्री थे । इनका विस्तृत विवरण ज्ञाताधर्मकथा में मिलता है। ३. हेतु (बुद्ध-बीज) हेतु से यहाँ अभिप्राय बुद्ध-बीज से है, क्योंकि मनुष्य योनि में उत्पन्न होने से ही सभी लोग बुद्ध नहीं हो सकते । केवल बुद्ध-जीव से युक्त पुरुष ही बुद्ध हो सकता है। तपस्वी सुमेध के बारे में निदानकथा में कहा गया है कि वे बुद्ध-बीज से ग्रहीत होने के कारण ही बुद्ध हुए।' बुद्ध-बीज की इस अवधारणा को जैनों के तीर्थङ्कर के नामकर्म से तुलनीय माना जा सकता है । जैनों के अनुसार जिस व्यक्ति ने तीर्थङ्कर-नामकर्म का उपार्जन किया हो वही व्यक्ति तीर्थंकर हो सकता है। ४. शास्ता का दर्शन बौद्ध धर्म के अनुसार बुद्धत्व प्राप्त करने वाले व्यक्ति के लिए शास्ता अर्थात् बुद्ध का दर्शन होना आवश्यक माना गया है। जैन परम्परा में इस १. "सुमेधताप सो किर बुद्धबीजं बुद्धंकुरो।"--निदानकथा ४० । उद्धृत-निदानकथा-भूमिका, पृ० ३९ (हरिदास संस्कृत ग्रंथमाला) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002127
Book TitleTirthankar Buddha aur Avtar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshchandra Gupta
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1988
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size14 MB
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