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________________ १२६ : तीर्थंकर, बुद्ध और अवतार : एक अध्ययन हीनयान का साधक निर्वाण-प्राप्ति से सन्तुष्ट हो जाता है जबकि महायान का साधक सर्वज्ञता, अनुत्तर ज्ञान या "सम्बोधि" जिसे "तथता' भी कहते हैं, उसके लिए प्रयत्नशील रहता है। हीनयान का परमार्थ महायान के लिए संवृनि-सत्य है । महायान का परमार्थ तत्त्व या परिनिष्पन्न सत्य तो केवल धर्मशन्यता है । महायान में धीरे-धीरे मन्त्रों और धारणाओं का प्रभुत्व बढ़ता गया जबकि होनयान इनसे मुक्त रहा । होनयान शील और समाधि प्रधान है जबाक महायान करुणा और प्रज्ञा से ओतप्रोत है। असंग ने अपने महायानाभिधर्मसङ्गीतिशास्त्र' में महायान की सात विशेषताओं का वर्णन किया है। आधुनिक विद्वानों ने भी इसी आधार पर होनेयान और महायान के भेद को स्पष्ट करने का प्रयत्न किया है। १. व्यापकता हीनयान का दृष्टिकोण सीमित है, जबकि महायान का दृष्टिकोण व्यापक है। २. प्राणिमात्र के लिए करुणा होनहान का लक्ष्य व्यक्ति का निर्वाण माय है, जबकि महायान सभी प्राणियों के निर्वाण के लिए प्रयत्नशील है । उसके अनुसार अर्हत् का पद, निर्वाण और तज्जन्य सुख तो मार का प्रलोभन मात्र है। ३. पुद्गलनैरात्म्य और धर्म-नैरात्म्य बीनयां न केवल पुद्गल-नैरात्म्य में विश्वास करता है। उसके अनुसार आत्मा मादीकी कोई चीज नहीं है। किन्तु महायान पुद्गल-नैरात्म्य और धर्म-नैरात्म्य दोनों में विश्वास करता है । उसके अनुसार आत्मा और धर्म कुछ भी नहीं है। ४. अद्भुत आध्यात्मिक शक्ति __ बोधिसत्व प्राणियों के निर्वाण के लिए प्रयत्न करते समय कभी भी थकावट और निराशा का अनुभव नहीं करता, भले ही उसे इस लक्ष्य की १. आउटलाइन्स आफ महायान बुद्धिज्म, पृ० ६२-६५ २. उद्धृत-भारतीय दर्शन, पृ० १७९-१८० ( डॉ० नन्द किशोर देवराज) ३. अष्टसाहस्त्रिका प्रज्ञापारमिता, ११; उद्धृत-इण्डियन फिलासफी भाग १, पृ० ६०१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002127
Book TitleTirthankar Buddha aur Avtar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshchandra Gupta
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1988
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size14 MB
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