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________________ बुद्धत्व को अवधारणा : १२५ (. तथागत अनेक प्रकार के पूर्व निवासों अर्थात् पूर्वजन्मों का स्मरण कर सकते हैं अर्थात् उन्हें अनेक पूर्व जन्मों का ज्ञान होता है। ९. तथागत अपने विशुद्ध एवं दिव्य चक्षु से कौन प्राणी मरकर कहाँ उत्पन्न होगा और कहाँ से मरकर यहाँ उत्पन्न हुआ है, इसे जानते हैं। १०. तथागत आस्रवों का क्षय हो जाने के कारण चित्त की विमुक्ति और प्रज्ञा की विमुक्ति को इसी जन्म में प्राप्त कर लोक में विचरण करते हैं। चार वैशार १. तथागत सभी तथ्यों के ज्ञाता होते हैं अतः उन्हें प्राश्निकों से कोई भय नहीं होता, दूसरे शब्दों में उनकी प्रज्ञा विशाल होती है । २. तथागत क्षीणास्रव (निर्मल चरित्र) होते हैं, उन्हें इस बात का कोई भय नहीं होता कि उनके निर्मल चरित्र पर कोई आक्षेप आ सके। ३. तथागत को कोई विघ्न या बाधा नहीं रहती। अतः उन्हें दूसरों से किसी प्रकार का कोई भय भी नहीं रहता है। ४. तथागत को अपने द्वारा उपदिष्ट धर्ममार्ग के सम्बन्ध में ऐसा कोई संशय या विचार नहीं होता कि यह सम्यक् प्रकार से दुःख क्षय की ओर नहीं ले जाता है। __अपने इन्हीं दसबलों और चार वैशारद्यों के कारण तथागत परिषद् में सिंहनाद करते हैं और धर्म चक्र का प्रवर्तन करते हैं। अपने बत्तीस महा पुरुष लक्षण, अस्सी अनुव्यंजन, अष्टादश आवेणिक धर्म यद्यपि हीनयान में उपलब्ध हैं तथापि महायान में इनका विशद् विवरण मिलता है । महायान में बुद्धत्व के लिए प्रज्ञापारमिता की प्राप्ति को आवश्यक माना गया है। जहाँ महायान में "प्रत्येक बद्ध", "श्रावक" और "अर्हत" को समान एवं "बुद्ध" से निम्न माना गया है, वहाँ हीनयान में "अर्हत्-पद" को सर्वोच्च एवं गौरवपूर्ण कहा गया है, स्वयं भगवान बुद्ध भी "अर्हत्" कहे गये हैं। ___ महायान स्वहित को छोड़कर परार्थ की प्राप्ति के लिए प्रेरणा देता है। महायान में बुद्धों की पूजा अथवा उपासना पर विशेष बल दिया जाता है जबकि हीनयान में ध्यान आदि साधनाओं पर जोर दिया जाता है। १. मज्झिमनिकाय, महासीहनादसुत्त भाग १ (१२/३), पृ० १०१-१०२ २. उद्धृत-बौद्ध धर्म के विकास का इतिहास, पृ० ३४५ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002127
Book TitleTirthankar Buddha aur Avtar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshchandra Gupta
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1988
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size14 MB
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