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________________ बुद्धत्व को अवधारणा : १११ १८ उनके दोनों कन्धों के ऊपर का भाग ठोस होता है। १९. उनका शरीर वतुलाकार हाता है अर्थात् पालथी मारकर बैठने पर उनके शरीर की लम्बाई-चौड़ाई बराबर होती है । २०. उनके दोनों कन्धे समान परिमाण के होते हैं। २१. उनकी शिराएँ (नाड़ियाँ) सुन्दर होती हैं। २२. उनकी ठोडी सिंह के समान होती है । २३. उनके मुख में ४४ दाँत होते हैं। २४. उनके दाँत सम होते हैं । २५. उनकी दंतपंक्ति छेद रहित होती है । २६. उनकी दंतपंक्ति शुभ्र होती है। २७. उनकी जिह्वा लम्बो होती है । २८. उनका स्वर मधुर होता है। २९. उनकी आँखें अलसी के पुष्प के समान नीली होती हैं। ३०. उनकी पलकें गाय के समान होती हैं। ३१. उनकी भौहों को रोम-राजी अत्यन्त कोमल और शुभ्र होती हैं । ३२ उनका शिर (मस्तक) उष्णोषाकार अर्थात् बीचमें से कुछ ऊँचा होता है। (ई) धर्मचक्र प्रवर्तन के लिए ब्रह्मा द्वारा प्रार्थना करना यह मान्यता है कि "अर्हत्" सम्यक् सम्बुद्ध होने के बाद बुद्ध के मन में प्रथम यह विचार आता है कि लोक मेरे उपदेश को ग्रहण नहीं कर पायेगा । उसी समय महाब्रह्मा आकर धर्मोपदेश देने की प्रार्थना करता है कि भगवान् धर्म का उपदेश करें क्योंकि धर्म को जानने वाले हैं।'' (उ) बुद्ध का सशरीर देवलोक गमन पालि त्रिपिटक में एक उल्लेख यह मिलता है कि भगवान बुद्ध ने अपनी माता को धर्मोपदेश देने के लिए एक वर्षावास तुषित लोक में व्यतीत किया । दीघनिकाय के महापदानसुत्त में यह भी उल्लेख है कि भगवान् बुद्ध १. दीघनिकाय भाग २, महापदानसुत्त (१.६.६२ ६४) पृ० ३६ २. बौद्ध धर्म दर्शन, पृ० ११८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002127
Book TitleTirthankar Buddha aur Avtar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshchandra Gupta
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1988
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size14 MB
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