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________________ ११० : तीर्थकर, बुद्ध और अवतार : एक अध्ययन १४. बोधिसत्व जब माता की कुक्षि से उत्पन्न होते हैं तब वे पैरों पर खड़े होकर उत्तर की ओर मुंह करके सात कदम चलते हैं, श्वेत छत्र के नीचे सभी दिशाओं को देखते हैं और घोषित करते हैं कि इस लोक में मैं श्रेष्ठ हूँ, मैं अग्र हूँ, मैं ज्येष्ठ हूँ। यह मेरा अन्तिम जन्म है फिर जन्म नहीं होगा। १५. बोधिसत्व जब माता को कुक्षि से निकलते हैं तब सम्पूर्ण लोक में प्रकाश होता है तथा कुछ समय के लिए संसार की बुराइयाँ दूर हो जाती हैं। (इ) बुद्ध के शरीर के ३२ लक्षण दीघनिकाय के महापदानसुत्त में बुद्ध के शरीर को निम्न ३२ लक्षणों से युक्त बताया गया है१. वे सुप्रतिष्ठिनपाद होते हैं । २. उनके पादतल में सर्वाकार परिपूर्ण चक्र होते हैं। ३. उनको एड़ियाँ ऊँची होती हैं । ४. उनकी उँगलियाँ लम्बी होती हैं। ५. उनके हाथ-पैर मद्र तथा कोमल होते हैं। ५. उनके हाथ और पैर को उँगलियों के बीच छेद नहीं होते । ७. उनके पावों के टखने शंकू के समान वलाकार होते हैं। ८. उनकी जाँघे हिरनी के जाँघों के समान होती हैं। ९. उनके हाथ इतने लम्बे होते हैं कि वे बिना झुके अपनी हथेलियों से अपने घुटनों का स्पर्श कर सकते हैं। १०. उनकी जननेन्द्रिय चमड़े से ढकी हुई होतो है। ११. उनके शरीर का वर्ण स्वर्ण के समान होता है। १२. उनके शरीर पर धूल नहीं जमतो है। १३. उनके प्रत्येक रोम-कूप में एक ही बाल होता है। १४. उनके बाल अंजन के समान नीलो कान्ति युक्त तथा कुंडलित (धुंध राले) होते हैं। १५. वे लम्बे अकुटिल शरीर वाले होते हैं। १६. उनके शरीर के सात भाग ठोस होते हैं। ९७. उनका शरीर सिंह-पूर्वाद्धं काय अर्थात् उनकी छाती उठी हुई होती है। १. दीघनिकाय भाग २, महापदानसुत्त (१-४.२०), पृ० १५-१६ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002127
Book TitleTirthankar Buddha aur Avtar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshchandra Gupta
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1988
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size14 MB
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