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बुद्ध को अवधारणा : १०९
१. बोधिसत्व तुषित देवलोक से च्युत हो स्मृतिमान जाग्रत होकर
माता के उदर में प्रवेश करते हैं। २. बोधिसत्व जब तुषित देवलोक से च्युत होकर माता के गर्भ में प्रवेश
करते हैं तब समस्त लोक में विपूल प्रकाश तथा लोकधातु (ब्रह्माण्ड)
में कम्पन होता है। ३. बोधिसत्व के माता की कुक्षि में प्रवेश करने के पश्चात् सदैव चार
देवपुत्र चारों दिशाओं में माता की रक्षा के लिए रहते हैं, ताकि
उनकी माता को कोई मनुष्य या अमनुष्य कष्ट न दे सके। 6. बोधिसत्व जब माता की कुक्षि में प्रवेश करते हैं, तब से उनकी
माता शीलवती होती है, वह हिंसा, चोरी, दुराचार, मिथ्याभाषण
तथा मादक वस्तुओं के सेवन से विरत रहती है। ५. बोधिसत्व की माता का चित्त पुरुष की ओर आकृष्ट नहीं होता ।
कामवासना के लिए उनकी माता पुरुष के राग से जीतो नहीं जा
सकती। ६. जब से बोधिसत्व माता के गर्भ में प्रवेश करते हैं, तब से माता को
सभी प्रकार सुखोपभोग उपलब्ध रहते हैं। ७. बोधिसत्व के माता के गर्भ में प्रवेश करने के पश्चात् उनकी माता को ___ कोई व्याधि नहीं होती तथा बोधिसत्व की माता उनको अपने उदर
में स्पष्ट देखती है। ८. बोधिसत्व की माता उनके जन्म के सात दिन बाद मरकर तुषित
देवलोक में उत्पन्न होती है। ९. बोधिसत्व की माता बोधिसत्व को पूरे दस माह कुक्षि में रखकर प्रसव
करती है । वह दस माह पूर्ण होने के पहले प्रसव नहीं करती है। १०. बोधिसत्व की माता बोधिसत्व को खड़े-खड़े प्रसव करती है। ११. बोधिसत्व माता की कुक्षि से निकलकर पृथ्वी पर गिरने भी नहीं पाते
कि चार देवपुत्र उन्हें लेकर माता के सम्मुख रहते हैं । १२. बोधिसत्व जब माता की कुक्षि से निकलते हैं तब बिल्कुल कफ, ____ रुधिर आदि मलों से अलिप्त ही निकलते हैं। १३. बोधिसत्व जब माता की कुक्षि से बाहर आते हैं, तो आकाश से शीत ___ और उष्ण जल को दो धारायें बहती हैं, उनसे बोधिसत्व और उनकी
माता का प्रक्षालन होता है।
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