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________________ ११२ : तीर्थकर, बुद्ध और अवतार : एक अध्ययन एक बार शद्धावास देवलोक में गये । जहाँ पूर्व ६ बद्धों तथा उनके काल में जिन व्यक्तियों ने प्रव्रज्या धारण कर साधना की थी, उनमें से अनेक लोग इस देवलोक में देवता के रूप में जन्मे थे, उन सभी ने आकर बुद्ध को अपना परिचय दिया और बताया कि वे किस बद्ध के शासन काल में प्रवजित होकर इस देवलोक में जन्मे हैं।' (ऊ) प्रातिहार्य ___ अवदान के प्रातिहार्य सूत्र में यह कथा वर्णित है, कि पूरण-कश्यप आदि छ: तीर्थिकों ने राजगृह में एकत्र होकर विचार किया कि श्रमण गौतम के लोक में उपस्थिति के कारण हम लोगों का मान-सम्मान दिन पर दिन कम होता जा रहा है जबकि हम लोग ऋद्धिमान एवं ज्ञानवान हैं, श्रमण गौतम के ऋद्धि-प्रातिहार्य (चमत्कार) जानने हेतु उन तोर्थिकों ने श्रावस्ती के राजा प्रसेनजित प्रार्थना की, कि आप श्रमण गौतम से चमत्कार दिखाने को कहें । राजा ने श्रमण गौतम से चमत्कार दिखाने का आग्रह किया। बद्ध ने कहा कि मेरा तो विचार है कि मनुष्य को अपने गुण छिपाने चाहिए और अवगुणों को प्रकट करना चाहिए । पुनः राजा ने कहा कि आप दूसरों के संशय एवं भ्रम को दूर करने हेतु प्रातिहार्य दिखावें । तदनन्तर श्रावस्ती के जेतवन में एक मण्डप बनाया गया । सभी तीर्थिकों, श्रावकों ने देखा कि भगवान् के शरीर से निसृत स्वर्णिम रश्मियों से समस्त लोक आभासित हो गया। ब्रह्मा आदि देवता भगवान् की तीन बार प्रदक्षिणा कर दाहिनी ओर बैठ गये और शक्रादि देवता बांई ओर बैठ गये। नन्द, उपनन्द और नाग राजाओं ने भगवान् के बैठने के लिए शकट-चक्र के परिमाण के बराबर सहस्र पंखुड़ियों वाला स्वर्ण-कमल निर्मित किया । भगवान उस पर विराजमान हो गये । एक पद्म के ऊपर दूसरे पद्म पर भी भगवान् बैठे दिखाई पड़ने लगे। इस प्रकार भगवान् ने अनेक बुद्ध-पिण्डी निर्मित की जिसमें कुछ बुद्ध शय्यासीन , कुछ खड़े हैं, कुछ चमत्कार दिखाते हैं और कुछ प्रश्न पूछते दिखाई दिये। इस कथा के अनुसार ज्ञात होता है कि बुद्ध प्रातिहार्य द्वारा अनेक बुद्धों की सृष्टि करते थे। १. दीघनिकाय भाग २, महापदान सुत्त (१६.७२-७४), पृ० ३९-४३ २. अवदान उद्धृत-बौद्ध धर्म दर्शन, (आचार्य नरेन्द्र देव), पृ० ११८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002127
Book TitleTirthankar Buddha aur Avtar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshchandra Gupta
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1988
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size14 MB
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