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________________ बुद्धत्व को अवधारणा : १०५ मज्झिमनिकाय के सेल-सुत्त के अनुसार 'बुद्ध' श्रमण गौतम का एक गुणवाचक नाम है, व्यक्तिवाचक नाम नहीं। उसमें भगवान् बुद्ध अपनी विशेषताओं के कारण ही स्वयं को बुद्ध कहते हैं कि 'मैं धर्म राजा हूँ, धर्मचक्र चला रहा हूँ, इस धर्मचक्र को तथागत का अनुजात (पीछेउत्पन्न) सारिपुत्र अनुचालित कर रहा है। भावनोय की भावना कर ली, परित्याज्य को छोड़ दिया। अतः हे ब्राह्मण मैं "बुद्ध' हूँ।"१ इस प्रकार ज्ञानवान या जाग्रत पुरुष 'बुद्ध' नाम से अभिहित हाता है जिसने बोध को प्राप्त कर लिया है। 'प्रतिबुद्ध' को कल्पना पूर्ण ज्ञानी के अर्थ में प्राचीन वैदिक साहित्य में भो विद्यमान है ।२ बुद्ध का आविर्भाव बोधि या ज्ञान से होता है, माता के गर्भ से नहीं। इसीलिए कहा गया है कि बुद्ध का आविर्भाव लोक में दुर्लभ है । बुद्ध का नाम सुनना भी लोक में दुर्लभ है। बद्ध पुरुष अन्धकार से ग्रसित लोक के लिए दीपक के समान होता है । वह संसार के प्राणियों के कल्याण के लिए धर्म का उप १. 'राजाहमस्मि सेला ति, धम्मराजा अनुत्तरो। धम्मेन चक्कं वत्तेमि, चक्कं अप्पटिवत्तियं ।' 'सम्बुद्धो पटिजानासि, धम्मराजा अनुत्तरो। धम्मेन चक्कं वत्तेमि, इति भाससि गोतम ॥' 'को नु सेनापति भोतो, सावको सत्थुरन्वयो । को ते तमनुवत्तेति, धम्मचक्कं पवत्तितं ।' 'मया पवत्तितं चक्कं, (सेला ति भगवा) धम्मचक्कं अनुत्तरं । सारिपुत्तो अनुवत्तेति, अनुजातो तथागतं ।' 'अभिञ्जय्यं अभिजातं भावेतब्बं च भावितं । पहातब्बं पहीनं मे, तस्मा बुद्धोस्मि ब्राह्मण ॥' -मज्झिमनिकाय भाग २, सेलसुत्त (४२।३।४), पृ० ४०० २. शतपथ ब्राह्मण, १४/७/२-१७ । ३. किच्छो बुद्धानमुप्पादो ।'-खुद्दकनिकाय भाग १ । धम्मपद १४/१८२, पृ० ३४ 'बुद्धो हवे कप्पतेहि दुल्लभो ।'-दीघनिकाय, महापरिनिब्बाणसुत्त . ४. 'घोसो पि खो एसो दुल्लभो लोकस्मि-यदिदं 'बुद्धो' ति।' -मज्झिम निकाय भाग २, सेलसुत्त (४२२३), पृ० ३९८ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002127
Book TitleTirthankar Buddha aur Avtar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshchandra Gupta
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1988
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size14 MB
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