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१०४ : तीर्थंकर, बुद्ध और अवतार : एक अध्ययन
आस्रव तथा अन्यान्य क्लेशों से पूर्णतः विमुक्त हो परम-सम्बोधि को प्राप्त कर लिया है, जो सब पदार्थों को यथार्थ रूप से जानने के बाद प्रजा को उपदेश देता है, ऐसा अबुद्धि विहत तथा बुद्धि प्रतिलाभी पुरुष ही बुद्ध कहलाता है । वैसे बुद्ध और जिन शब्द ऐसे हैं जिन्हें जैन और बौद्ध दोनों परम्पराओं में समानरूप से स्वीकार किया गया है। जैन परम्परा में तीर्थंकर के लिए बुद्ध और जिन शब्दों का प्रयोग प्राचीन आगमों में बहुतायत से मिलता है इसी प्रकार बौद्धसाहित्य में बुद्ध को जिन और जिनपुत्र कहा गया है ।
२. बुद्धत्व की अवधारणा का अर्थ
छठीं शताब्दी ईसा पूर्व में गौतम ने 'बुद्ध' नाम अर्जित किया था । 'बुद्ध' यह नाम उनको अपनी माता महामाया एवं पिता शुद्धोधन से प्राप्त नहीं हुआ था, अपितु बोधि-वृक्ष के नीचे ज्ञानप्राप्त करने पर प्राप्त हुआ था। महानिद्देस एवं विसुद्धिमग्ग में उल्लेख है कि गौतम ने बोधि वृक्ष के नीचे अनुत्तर संग्राम में विजय प्राप्त करते हुए, अद्वितीय पुरुषार्थ के द्वारा यह नाम अर्जित किया था । २
प्रत्येक प्राणा बुद्धत्व की क्षमता से युक्त है । बुद्ध - बीज प्रत्येक में विद्य मान है। प्रत्येक प्राणी वोयं, प्रज्ञा एवं पुरुषार्थ द्वारा बुद्धत्व की प्राप्ति कर सकता है । गौतम अपने पुरुषार्थ से सम्यक् ज्ञान प्राप्त करने के कारण 'सम्यक् सम्बुद्ध' कहलाये । अपनो इस ब्राह्मी स्थिति के कारण लोक में 'भगवान् बुद्ध' या 'सम्यक् सम्बुद्ध' नाम से प्रसिद्ध हुए हैं ।
१. 'बुद्धो ति केनट्ठेन बुद्धो ? बुज्झिता सच्चानी ति बुद्धो, बोधेता पजाया ति बुद्धी सब्बञ्जता बुद्ध, सब्बदस्साविताय बुद्धो, अभिज्ञय्यताय बुद्धो, विकसिताय बुद्धो वीणासखस खातेन बुद्धो, निरुपक्किलेससङ्खातेन बुद्धो, एकतवीतरागोति बुद्धो, एकन्तवीतदोसो ति बुद्धो, एकन्तवीतमोहो ति बुद्धो, एकतनिक्लेिसो ति बुद्धी, एकायनमग्गं गतो वि बुद्धो, एको अनुत्तरं सम्मासम्बोधि अभिसम्बुद्धीति बुद्धो, अबुद्धि विहतता, बुद्धिपटिलाभा ति बुद्धो ।' - खुद्दकनिकाय भाग ४ (२), चुल्लनिद्देस, पृ० २०८-२०९ ॥ २. (क) महानिद्देस, पृ० १२० (ख) विसुद्धिमग्ग ७ / ५५, मृ० ४२ । ३. ' सम्मा सामञ्च सब्बधम्मानं बुद्धता पन सम्मा सम्बुद्धो ।'
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- विसुद्धिमग्ग ७ / २६, पृ० १३६ |
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