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________________ ८४ : तोर्थक र, बुद्ध और अवतार : एक अध्ययन पिता का नाम अश्वसेन, माता का नाम वामा और जन्मस्थान वाराणसी माना गया है। इनके शरीर की ऊँचाई नौ रत्नि अर्थात नौ हाथ तथा वर्ण श्याम माना गया है। इनके पिता वाराणसी के राजा थे । जैन कथा साहित्य में हमें उनके दो नाम उपलब्ध होते हैं-अश्वसेन और हयसेन । महाभारत में वाराणसी के जिन राजाओं का उल्लेख उपलब्ध है उनमें से एक नाम हर्यअश्व ही है, सम्भावना की जा सकती है कि हर्यअश्व और अश्वसेन एक ही व्यक्ति रहे हों। पार्श्व की ऐतिहासिकता-डा० सागरमल जैन के अनुसार किसी भी व्यक्ति की ऐतिहासिकता सिद्ध करने के लिए अभिलेखीय एवं साहित्यिक साक्ष्यों को महत्त्वपूर्ण माना जाता है। पार्श्व की ऐतिहासिकता के विषय में अभी तक ईसापूर्व का कोई अभिलेखीय साक्ष्य उपलब्ध नहीं हुआ है। भारत में प्राप्त अभी तक पढ़े जा सकने वाले प्राचीनतम अभिलेख मौर्यकाल से अधिक प्राचीन नहीं हैं । मौर्यकालीन अभिलेखों में निर्ग्रन्थों का तो उल्लेख है किन्तु पार्श्व का कोई उल्लेख नहीं है। परम्परागत मान्यताओं के आधार पर पाश्वनाथ मौर्यकाल से ४०० वर्ष पूर्व हुए हैं, किन्तु इनके सम्बन्ध में अभिलेखीय साक्ष्य ईसा की प्रथम शताब्दी का उपलब्ध है। मथुरा के अभिलेख संख्या ८३ में स्थानीय कुल के गणि उग्गहीनिय के शिष्य वाचक घोष द्वारा अहंत् पार्श्वनाथ की एक प्रतिमा को स्थापित करने का उल्लेख है।' डा० जैकोबी ने बौद्ध साहित्य के उल्लेखों के आधार पर निर्ग्रन्थ सम्प्रदाय का अस्तित्व प्रमाणित करते हुए लिखा है कि "बौद्ध निर्ग्रन्थ सम्प्रदाय को एक प्रमुख सम्प्रदाय मानते थे, किन्तु निग्रन्थ अपने प्रतिद्वन्द्वी अर्थात् बौद्धों की उपेक्षा करते थे। इससे हम इस निर्णय पर पहुंचते है कि बुद्ध के समय निर्ग्रन्थ-सम्प्रदाय कोई नवीन स्थापित सम्प्रदाय नहीं था । यही मत पिटकों का भी जान पड़ता है।"५ डा. हीरालाल जैन ने लिखा है-"बौद्ध ग्रन्थ 'अंगुत्तरनिकाय' 'चत्तु. क्कनिपात' (वग्ग ५) और उसकी 'अट्ठकथा' में उल्लेख है कि गौतम बुद्ध १. कल्पसूत्र, १५०, समवायांग, गा० १५७, आवश्यकनियुक्ति, गा० ३८४-८९ । २. समवायांग, गा० ९, आवश्यकनियुक्ति, गा० ३८०, ३७७ । ३. अर्हत् पार्श्व और उनकी परम्परा, पृ० १ । ४. जैन शिलालेख संग्रह, भाग ३, लेख संख्या ८३ । ५. Indian Antiquary, Vol. 9th, Page 160. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002127
Book TitleTirthankar Buddha aur Avtar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshchandra Gupta
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1988
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size14 MB
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