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२६ : जैनधर्म की प्रमुख साध्वियाँ एवं महिलाएँ
देवकी और रुक्मिणी आदि अनेक महिलाओं ने प्रभु के पास श्राविका धर्मं स्वीकार किया ।
प्रभु नेमिनाथ द्वारा केवलज्ञान की प्राप्ति तथा संघ स्थापना का संदेश सुनकर राजीमती भी अनेक साध्वियों के साथ भगवान् को वन्दन करने हेतु रैवतगिरि (गिरिनार पर्वत) की ओर चल पड़ी। रास्ते में घनघोर वर्षा के कारण एक गुफा में राजीमती ने अपने भींगे कपड़े सुखाने के लिये फैला दिये । यहाँ राजीमती को निर्वस्त्र देखकर गुफा में ध्यानस्थ रथनेमि का मन पुनः विचलित हो गया फलतः उसने राजीमती से कामेच्छा - पूर्ति की प्रार्थना की, परन्तु दृढ़प्रतिज्ञ राजीमती अपने मनोभाव को सुस्थिर रखते हुए निर्भयपूर्वक बोली, "हे रथनेमि तुम इन्द्रिय सुखों के मोह से पथ भ्रष्ट हो रहे हो, तुम तो उत्तम कुल के मानव हो, क्या त्यागे हुए विषयों को फिर से ग्रहण करोगे ? तुम्हें इस विपरीत मार्ग पर चलते लज्जा नहीं आती? तुम्हें धिक्कार है, इस प्रकार अंगीकृत व्रत से गिरने की अपेक्षा तो तुम्हारा मरण श्रेष्ठ है । क्योंकि मनुष्य जन्म बहुत दुर्लभ है और कुल जाति के गौरव को सुरक्षित रखते हुए आत्म-कल्याण करना ही तुम्हारे लिये श्रेयस्कर है ।
स्थिर संयम नारी को हितकारी ललकार और फटकार को सुनकर रथनेमि धर्म में सम्यक् प्रकार से वैसे ही स्थिर हो गया जैसे अंकुश से हाथी हो जाता है । तदनन्तर अरिष्टनेमि के चरणों में पहुँच कर कठोर तपश्चर्या से कर्म समूह को भस्मसात् कर रथनेमि भी शुद्ध, बुद्ध और मुक्त हो गये । राजोमती ने भो अरिष्नेमि के समवसरण में पहुँचकर तप संयम
१. आ० हस्तीमलजी - जैन धर्मं का मौलिक इतिहास - भाग १, पृ० २०१ शिवा रोहिणी देवक्यो, रुक्मिण्याद्याश्च योषितः
जगृहु: श्राविका धर्ममन्याश्च स्वामिन्निधौ ।
- त्रिषष्टिशलाका पुरुषचरित्र - पर्व ८, ९
२. (क) घिरत्थु ते जसोकामी, जोतं जाविय कारणा वतं इच्छसि आवेऊ, सेय ते मरणं भवे ।
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- दशवेकालिक सूत्र, अ० २
(ख) उत्तराध्ययन सूत्र, अ० २२ (ग) कोहं माणं निगिण्हिता, भायं लोभं च सव्वसो इन्दियाई, वसे काउं, अय्याणं उवसंहरे ।
-- उत्तराध्ययन सूत्र, अ० २२, पृ० २३१.
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