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________________ प्रागैतिहासिक काल की जैन साध्वियां एवं विदुषी महिलाएँ : ११ संसार त्याग कर, शुभ भावना रखते हुए सिद्ध गति प्राप्त की : लक्ष्मणा: ___ आठवें तीर्थंकर चन्द्रप्रभ की माता तथा चन्द्रपुर के राजा महासेन की रानी का नाम लक्ष्मणा था। गर्भ धारण करने के पश्चात् रानी ने मंगलकारी शुभ स्वप्न देखे । सुखपूर्वक गर्भकाल पूर्ण कर माता ने चन्द्रप्रभ को जन्म दिया। बालक जब गर्भ में था तब माता को चन्द्रपान (चाँदनी रात में विचरण) करने की इच्छा हुई थी इसलिये पुत्र का नाम चन्द्रप्रभ रखा । युवावस्था होने पर माता-पिता ने पुत्र का विवाह उत्तम राज कन्याओं से किया। राज्य करने के पश्चात् चन्द्रप्रभ ने दीक्षित होकर केवल-ज्ञान प्राप्त किया। माता लक्ष्मणा ने भी कर्म क्षय कर सिद्ध गति प्राप्त की। रामादेवी : नौवें तीर्थंकर सुविधिनाथ की माता रामादेवी काकन्दी नगरी के राजा सुग्रीव की सर्वगुणसंपन्ना महारानी थीं। गर्भकाल में माता को पुष्प का दोहद उत्पन्न हुआ। अतः पुत्र का नाम पुष्पदन्त रखा गया। युवावस्था में पुष्पदन्त का विवाह कई योग्य कुमारियों के साथ हुआ। तत्पश्चात् उसने राज्य का त्याग किया और दीक्षित होकर केवल-ज्ञान प्राप्त किया। माता रामादेवी भी सांसारिक सुखों का त्याग करके तृतीय, सनत्कुमार देवलोक में उत्पन्न हुई। . १. त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र-पर्व ३, सर्ग ५, पृ० ५३ २. समवायांग १५७, तीर्थोद्गालिक ४७१, तथा आवश्यक नि० ३८३ ३. (क) गर्भस्थेऽस्मिन् मातुरासीच्चन्द्रपानाय दोहदः . चन्द्राभश्चैष इत्याह बच्चन्द्रप्रभममुं पिता । -त्रिषष्टिशलाकापुरुष च. ३।६।४९ (ख) चउपनमहापुरुषचरित्र, पृ० ८८ ४. समवायांग १५७, तीर्थोद्गालिक ४७२, स्थानांग (अभयदेव) पृ० ३०८. ५. (क) त्रिषष्टिशलाकापुरुष, पर्व ३, सर्ग ७, पृ० ४९-५० (ख) उत्तरपुराण में जपरामा नाम का उल्लेख है। ६. आ० हस्तीमलजी -जैनधर्म का मौलिक इतिहास पृ० ५९८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002126
Book TitleJain Dharma ki Pramukh Sadhviya evam Mahilaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHirabai Boradiya
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Religion
File Size16 MB
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