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१२ : जैनधर्म की प्रमुख साध्वियां एवं महिलाएं नन्दा ':
आप दसवें तीर्थंकर शीतलनाथ की माता तथा भद्दिलपुर नगर के महाराजा दृढ़रथ की सर्वगुणसंपन्ना रानी थीं। आपने मंगलकारी चौदह शुभ स्वप्न देखे और स्वप्नों का शुभ फल जानकर हर्षित होते हुए संयम पूर्वक गर्भ का पालन किया। उसी समय राजा दृढ़रथ का शरीर दाहज्वर से पीड़ित था। संयोगवश एक दिन रानी नन्दा के कर स्पर्श मात्र से वह वेदना शान्त हो गई। अतः बालक का नाम शीतलनाथ रखा गया । यौवन वय होने पर शीतलनाथ का पाणिग्रहण योग्य कन्याओं के साथ सम्पन्न हआ। वर्षों तक राज्य करने के पश्चात् आपने संसार त्याग कर प्रव्रज्या ली तथा केवल-ज्ञान प्राप्त किया। माता नन्दा ने भी धर्म की आराधना करते हुए तृतीय सनत्कुमार देवलोक में प्रयाण किया। विष्णुदेवी:
विष्णुदेवी ग्यारहवें तीर्थंकर श्री श्रेयांसनाथ की माता तथा भारतवर्ष के सिंहपुरी नगरी के अधिनायक महाराज विष्णु की सद्गुणधारिणी तथा धर्मपरायणा रानी थी। श्रेयांसनाथ का जीव विष्णुदेवीके गर्भ में आने पर उन्होंने परम्परानुसार चौदह शुभ स्वप्न देखा । गर्भकाल पूर्ण होने पर माता ने कल्याणकारी पुत्र को जन्म दिया । यौवन वय में सर्वगुण संपन्न कई कन्याओं से पूत्र का पाणिग्रहण करवाया। वर्षों तक राज्य करने के पश्चात् श्रेयांस राजा ने दीक्षा ग्रहण की और केवल-ज्ञान प्राप्त किया। माता विष्णुदेवी कर्मों का क्षय करके तृतीय सनत्कुमार देवलोक में गई।
१. समवायांग १५७, तीर्थोद्गालिक ४७३, स्थानांग (अभयदेव) पृ० ३०८ २. वही,
-भाग १, पृ० ५९८ (ख) राज्ञः सन्तप्तमप्यंगं, नन्दास्पर्शेन शीत्यभूत् । गर्भस्थेऽस्मिन्निति तस्य, नाम शीतल इत्यभूत् ॥
-त्रिषष्टिशलाकापुरुष, प० ३, स० ८, पृ० ४७ ३. समवायांग १५७, तीर्थोद्गालिक ४७४, आवश्यक नियुक्ति ३८३, ३८८ ४. जिनस्य मातापितरावुत्सवेन महीयसा । अभिधां श्रेयसि दिने, श्रेयांस इति चक्रतुः ।।
. -त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित, ४-१-८६
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