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________________ १० : जैनधर्म की प्रमुख साध्वियां एवं महिलाएँ में जाकर मातृ-हृदय-पारखी रानी ने सत्य न्याय दिया। इस प्रकार रानो ने इस विकट समस्या का समाधान अपनी सद्बुद्धि से कर दिया । समयानुसार उन्हों सुखपूर्वक पुत्र-रत्न को जन्म दिया । कालान्तर में पुत्र का विवाह कई योग्य कन्याओं के साथ हुआ । पुत्र के दीक्षित होने के पश्चात् माता ने भी दीक्षित हो कर्मों का क्षय करके सिद्ध गति प्राप्त की । सुसीमा :४ आप तीर्थंकर पद्मप्रभु को कोमल हृदया माता तथा कौशाम्बी नगरी के महाराज धर की धर्मपरायणा पत्नी थीं। आपने गर्भ धारण करने के पश्चात् शुभ मंगलकारी चौदह स्वप्न देखे। गर्भकाल में इन्हें पद्म (कमल) को शय्या में सोने का दोहद उत्पन्न हुआ था, जो राजा द्वारा पूर्ण किया गया। माता ने उचित समय पर सुखपूर्वक पूत्र-रत्न को जन्म दिया । बाल्यकाल पूर्ण होने पर माता-पिता ने योग्य कन्याओं के साथ इनका पाणिग्रहण कराया। पुत्र के दीक्षित होने के पश्चात् माता सुंसीमा ने भी धर्म ध्यान में अपने जीवन को सार्थक किया और अन्त में कर्मों का क्षय कर सिद्ध गति प्राप्त की। पृथ्वी जैन परम्परा के सातवें तीर्थंकर सुपार्श्वनाथ की माता पृथ्वी वाराणसी के महाराजा प्रतिष्ठसेन की पत्नी थीं। महारानी पृथ्वी ने गर्भ धारण करते समय मंगलकारी चौदह स्वप्न देखे । विधिपूर्वक गर्भकाल पूर्ण होने पर माता ने पुत्र-रत्न को जन्म दिया। योग्य वय होने पर मातापिता ने योग्य कन्याओं के साथ सुपार्श्वकुमार का विवाह किया। कालांतर में राज्य सुख भोगकर पुत्र ने दीक्षा अंगीकार की। माता ने भी १. त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र-पर्व ३, सर्ग, ३, पृ० ३५, ३७ २. आवश्यकचूर्णि-पूर्व भाग, पृ० १० ३. आ० हस्तीमलजी-जैनधर्म का मौलिक इतिहास पृ० ५९८ ४. समवायांग १५७, तीर्थोद्गालिक ४६९।। ५. त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र पृ० ८३ -पर्व ३, सर्ग ४, पृ० ४३ ६. तीर्थोद्गालिक ४७०, समवायांग १५७, तथा आवश्यकनियुक्ति ३८५ ७. आ० हस्तीमलजी-जैनधर्म का मौलिक इतिहास पृ० ५६९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002126
Book TitleJain Dharma ki Pramukh Sadhviya evam Mahilaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHirabai Boradiya
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Religion
File Size16 MB
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