SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 76
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रागैतिहासिक काल की जैन साध्वियों एवं विदुषी महिलाएँ : ९ धर्मसंघ की स्थापना की। माता ने भो दीक्षित हो आत्म कल्याण किया तथा सिद्ध गति को प्राप्त हुई। सिद्धार्था : चौथे तीर्थकर अभिनन्दन की माता तथा अयोध्या के महाराजा संवर की धर्मपरायणा महारानी का नाम सिद्धार्था था । महारानी सिद्धार्था ने गर्भ धारण किया और परम्परानुसार उस रात्रि को चौदह मंगलकारी शुभ स्वप्न देखे । गर्भकाल पूर्ण होने पर माता सिद्धार्था ने सुखपूर्वक पुत्ररत्न को जन्म दिया ।' परम्परानुसार देव-देवांगनाओं ने उत्सव का आयोजन किया। माता-पिता ने वयस्क होने के पश्चात् कई योग्य कन्याओं के साथ इनका विवाह किया। कालान्तर में पुत्र के दीक्षित हो केवल ज्ञान प्राप्त होने पर उन्होंने भी दीक्षा ग्रहण की तथा सिद्धगति प्राप्त की। मंगला : अयोध्यापति महाराजा मेघ की महारानी मंगला थीं। ये पंचम तीर्थंकर सुमतिनाथ की माता थों । गर्भ धारण के साथ ही रानी ने मंगलकारी चौदह शुभ स्वप्न देखे । सुमतिनाथ की माता मंगला न्यायप्रिय एवं विदुषी महिला थीं। सत्य तथा न्यायोचित निर्णय देने में प्रवीण थीं। माँ की ममत्व भावना एवं स्त्री स्वभाव की वह पारखी थीं। इसका उदाहरण नीचे दी हुई एक कथा से मिलता है। किसी समय राजा मेघ को चिन्तित देख कर रानी मंगला ने उसका कारण जानना चाहा। राजा ने राज्यसभा में आई हुई एक शिशु की दो माताओं की चर्चा करते हुए कहा, "बालक की कौन-सी स्त्री सच्ची माता है" इसका निर्णय नहीं कर पाया हूँ और इसी कारण मैं सोच में पड़ा हूँ कि कैसे पता लगाया जाये कि कौन बालक की असली माँ है। रानी ने नम्र शब्दों में स्वयं निर्णय देने का सुझाव रखा और राज्य सभा १. समवायांग, १५७, आवश्यक नियुक्ति ३८२-७ नन्दीसूत्र वृत्ति (मलयगिरि) १० १५८, तीर्थोद्गालिक ४६८ २. आ० हस्तीमलजी-जैनधर्म का मौलिक इतिहास-भाग १, पृ० ५९८ ३. हेमचन्द्राचार्य रचित-त्रिषष्टिशलाकापुरुष-पर्व ३, सर्ग २, पृ० २३ (गुजराती अनुवाद) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002126
Book TitleJain Dharma ki Pramukh Sadhviya evam Mahilaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHirabai Boradiya
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Religion
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy