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८ : जैनधर्म की प्रमुख साध्वियां एवं महिलाएं जितशत्रुकी धर्मपरायण महारानीका नाम विजयादेवी था महारानी विजयादेवीने गर्भ धारणकी रात्रि में शुभ कल्याणकारी चौदह स्वप्न देखे । 'ये स्वप्न शुभ के संकेतक होते हैं, जिनसे माता को पूर्वानुमान होता है कि मेरे गर्भ में जो जीव है वह समाज को धर्मनीति को ओर ले जाने वाला होगा। गर्भकाल पूर्ण होने पर विजया माता ने सुखपूर्वक पुत्र-रत्नको जन्म दिया। इस पुत्र के गर्भावतरण के समय से ही राजा जितशत्रु की शक्ति बढ़ गई और उसे कोई भी राजा पराजित न कर सका, इसलिये माता-पिता ने पुत्र का नाम अजितकुमार रखा । युवावस्था प्राप्त होने पर माता-पिता ने योग्य कन्याओं के साथ पुत्र का पाणिग्रहण संस्कार किया। _जैन आगमों में तीर्थंकर अजितनाथ की विवाहित पत्नियों के नामों का उल्लेख प्राप्त नहीं होता है। यह माना जा सकता है कि जैन इतिहासकार तीर्थंकरों के व्यक्तित्व को उभारने में उनकी पत्नियों के नामों के साथ उचित न्याय नहीं कर सके हैं। यह भी सम्भावना हो सकती है कि उनकी पत्नियों के नाम अवश्य ही कहीं न कहीं उल्लिखित होंगे जो कि लिपिबद्ध नहीं हो सके अथवा उस युग में ऐसे महान् व्यक्ति की पत्नियों के नामों का नामांकन करने की सार्वजनिक परम्परा नहीं रही हो। तीर्थंकर अजितनाथ को केवल-ज्ञान प्राप्त होने पर माता विजया भी अपने सब घातिकर्मों का क्षय करके सिद्ध गति को प्राप्त हुई। सेना देवी :२
तीसरे तीर्थकर संभवनाथ को माता बनने का सौभाग्य सेनादेवी को प्राप्त हुआ था । शुभ गर्भ धारण के समय माता सेनादेवी ने चौदह शुभ स्वप्न देखे । उनका फल जानने के लिये ये अपने पति महाराजा जितारि के समीप गई। पति के शुभ स्वप्न फल बताने पर वे आनन्दित हो गर्भ पालन करने लगीं । कालांतर में गर्भावधि पूर्ण होने पर एक तेजस्वी पुत्र को जन्म दिया जिसका परम्परानुसार जन्म, विवाह, दीक्षा आदि (पाँच) कल्याणक देवी पुरुषों तथा देवांगनाओं द्वारा किया गया। कालान्तर में तीर्थंकर संभवनाथ ते दीक्षित होकर केवल ज्ञान प्राप्त किया और
१. समवायांग १५७, तित्थोगालिय ४६६ । २. त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र-पर्व २, सर्ग ६, श्लोक ६६५-६७३ ३. वही, पर्व ३, सर्ग १, पृ० ७ ..
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