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खरतरगच्छीय प्रवर्तिनी सिहश्रीजी म० के साध्वी- समुदाय का परिचय : २६१
हो गया । जेठीबाई की मनोकामना सफल हुई । पू० गुरुवर्या के सान्निध्य से उन्होंने अध्ययन के साथ-साथ अपने आत्मबल एवं वैराग्य - भावना को दृढ़ बनाया । चातुर्मास बाद वि० सं० १९७६ मि० सु० ५ को दीक्षा ग्रहण कर पू० वल्लभश्रीजी म०सा० की प्रधान शिष्या बनीं। अध्ययन के साथ आप सामुदायिक विचार-विमर्श, देखभाल आदि का उत्तरदायित्व निभाने में अपनी गुरुवर्या का पूर्ण सहयोग करने लगीं । आपकी सूझ-बूझ इतनी विवेकपूर्ण थी कि बिगड़ती बात बना लेती थीं । पूज्या प्रवर्तिनी जी के पास आपका पद सदा 'मन्त्री' जैसा ही रहा । गुरुसेवा आपके जीवन का सर्वस्व था । शिष्य का विनय, गुरु के वात्सल्य को खींचता है । जहाँ ये दोनों होते हैं, वहाँ आनन्द का पूछना ही क्या ? आपने अपने समूचे अस्तित्व को गुरु में विलीन कर दिया था । उनकी अपनी इच्छा, भावना कुछ भी नहीं सब कुछ गुरु समर्पित था । आप उन शिष्याओं में थीं, जो गुरुहृदय में बसकर 'धन्यतम' की कोटि में आते हैं । इसी के परिणामस्वरूप प० पू० प्रमोद श्रीजी म० सा० के स्वर्गवास के बाद शिव-समुदाय का संचालन आपके हाथों सौंपा गया। आज आपकी उम्र ८८ वर्ष की है फिर भी अपने उत्तरदायित्व को बड़ी कुशलता के साथ निभा रही हैं । आपकी दीर्घायु की कामना के साथ शासन देव से प्रार्थना है कि आपके सफल नेतृत्व में, समुदाय अधिकाधिक रत्नत्रय की आराधना एवं शासन प्रभावना करते हुए समृद्ध बने ।
वर्तमान में विचरण कर रही साध्वी श्री कुसुमश्रीजी म०, निपुणश्रीजी म०, कमलप्रभाश्रीजी म० आदि प्रवर्तिनी श्री वल्लभश्रीजी म० सा० की ही विदुषो शिष्याएँ हैं ।
विमलश्रीजी
आपका जन्म स्थान एवं समय उपलब्ध न हो सका। आप शिवश्रीजी म० सा० की शिष्या थीं । आपका सबसे बड़ा योगदान है प० पू० प्र० प्रमोद श्रीजी म० सा० जैसे व्यक्तित्व का निर्माण करना । पू० शिवश्रीजी म० सा० तो मातापुत्री ( पू० जयवन्तश्रीजी म०, प्रमोदश्रीजी म० ) को दीक्षा देकर उनकी शिक्षा-दीक्षा का सारा उत्तरदायित्व पू० विमलश्रीजी म० को सौंपकर अजमेर पधार गई थीं । करीब ११ महीने बाद आपका स्वर्गवास भी हो गया था । अतः बालसाध्वी प्रमोदश्रीजी की विलक्षण बुद्धि और विलक्षण प्रतिभा को सफल बनाने का सारा उत्तरदायित्व आप पर ही था । आपने उसको बखूबी निभाया और एक तेजस्वी व्यक्तित्व का
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