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________________ २६० : जैनधर्म की प्रमुख साध्वियां एवं महिलाएं वल्लभश्रीजी आपका जन्म लोहावट में पारख गोत्रीय सूरजमलजी की धर्मपत्नी श्रीमती गोगादेवी की कुक्षि से वि० सं० १९५१ पौष कृष्ण ७ को हुआ था। १० वर्ष की उम्र में ही भुवाजी ( ज्ञानश्रीजी म० ) द्वारा प्रदत्त संस्कार प० पू० गुरुवर्या श्री सिंहश्रीजी म० के प्रभावशाली, वैराग्यमय प्रवचनों से अंकुरित हुए। भुवाजी के साथ दीक्षा लेने का संकल्प कर लिया। महान् तपस्वी छगनसागर जी म० सा० के कर-कमलों से दीक्षित हो भुवा-भतीजी की यह अलबेली जोड़ी पू० गुरुवर्या सिंहश्रीजी म० सा० का शिष्यत्व स्वीकार कर कृतार्थ बनी । छोटो उम्र, तीक्ष्ण बुद्धि, दृढ लगन, अध्ययन रुचि से आप थोड़े वर्षों में ही महान् विदुषी बन गईं। प० पू० प्रेमश्रीजी म० सा० के दिवंगत होने के पश्चात् उनकी परम कृपा-पात्र आपको छोटी सादडी में वि० सं० २०१० शरदपूर्णिमा को भव्य समारोह के साथ शिवमण्डल का नेतृत्व रूप प्रवर्तिनी पद से विभूषित किया गया । आपके हाथों शासन-प्रभावना के अनेकों कार्य हुए। अन्त में जंघाबल क्षीण होने पर अमलनेर महाराष्ट्र में ६ साल स्थानापन्न रहीं । आप वि० सं० २०१८ फा० सु० १४ को समाधिपूर्वक स्वर्ग सिधारी। आपके विशाल शिष्या प्रशिष्या परिवार में कई साध्वियाँ बड़ी विदुषी, अच्छी व्याख्यात्री, लेखिका एवं कवयित्री हैं। आपश्री ने करीब २० पुस्तकों का लेखन, संपादन व प्रकाशन करवाया था। जिनश्रीजी आप वर्तमान में शिव-मंडल के प्रवर्तिनी पद पर प्रतिष्ठित प० पू० प्र० श्री वल्लभश्रीजी म० सा० की प्रधान शिष्या हैं। आपका जन्म वि० सं० १९५७ आश्विन सु० ८ को तिवरी ( राज० ) में हुआ था। आपके पिता श्री लादुराम जी बुरड़ एवं मातुश्री घूड़ी देवी थीं। आपका नाम 'जेठीबाई' था। १४ वर्ष को उम्र में आपका विवाह राजमलजी श्रीमाल के साथ हुआ था किन्तु डेढ़ वर्ष के बाद ही आप विधवा हो गईं। कभीकभी दुःख सुख के लिए होता है। अन्धकार में प्रकाश को किरण चमक जाती है। वि० सं० १९७६ में प० पू० ज्ञानश्रीजी एवं प्र० पू० वल्लभश्रीजी म० तिवरी पधारी । आप भी गुरुवर्याओं के दर्शनार्थ गई। कुछ ही क्षणों के संसर्ग ने जेठीबाई की चेतना को जगाया। गुरुवर्या श्री तो दूसरे दिन जोधपुर की ओर विहार कर गईं किन्तु जेठीबाई के दिल में हलचल बढ़ती गई। उनके पुण्य से खिची पू० गुरुवर्या का वह चातुर्मास तिवरी में ही Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002126
Book TitleJain Dharma ki Pramukh Sadhviya evam Mahilaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHirabai Boradiya
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Religion
File Size16 MB
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