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________________ सरतरगच्छीय प्रवतिनी सिंहश्रीजी म० के साध्वी-समुदाय का परिचय : २५७ की उम्र में ही विधवा हो जाने से वैराग्यवृत्ति जागृत हुई। आप १९३२ की अक्षयतृतीया को प० पू० लक्ष्मीश्रीजी म० के चरणों में संयम स्वीकार कर समर्पित हो गई। आपका प्रवचन बड़ा ही प्रभावशाली, रोचक व प्रेरक होता था। यही कारण है कि आपने कई आत्माओं को प्रतिबोध दे संयमी बनाया। दूसरों की भावना को अपने विचारों से अनुप्राणित कर देने की क्षमता प्राप्त कर लेना, बहुत बड़ी उपलब्धि है। आप ही का पुण्य प्रभाव है कि आज आपकी परंपरा सुयोग्य-साध्वियों से समृद्ध है, और शिव-मंडल के नाम से प्रसिद्ध है। आपकी ७ शिष्यायें प्रसिद्ध हैं । १. प्रतापश्रीजी म० २. देवश्रीजी म० ३. प्रेमश्रीजी म० ४. ज्ञानश्रीजी म० ५. वल्लभश्रीजी म० ६. विमलश्रीजी म० ७. प्रमोदश्रीजी म० । आप वि० सं० १९६५ पौ० सु० १२ को अजमेर में दिवंगत हई। इन सात पूज्याओं का विशाल शिष्या-प्रशिष्या परिवार शिव-मण्डल है। रंग-विरंगे पुष्पों से जैसे वाटिका महकती है, वैसे गुण-सौरभ संपन्न ८५-९० साध्वियों से यह शिव-मण्डल का बगीचा महक रहा है। प्रतापश्रीजी आपका जन्म वि० सं० १९२५ पौषसुद १० को फलोदी में हुआ था। आपके पिता मुकनचन्दजी लंकड़ एवं माता सुकन देवी थीं। आपका नाम आसीबाई था। १२ वर्ष की अल्पायु में सूरजमलजी झाबक के साथ आपका विवाह हुआ किन्तु आपका गृहस्थ-जीवन लम्बे समय तक नहीं चला। कुछ वर्षों में ही आपका सौभाग्य छिन गया। आसीबाई 'बीती ताहि बिसार दे, आगे की सुध लेय' के अनुसार जो कुछ हुआ उसे भूलकर, आगे क्या करना है, उस प्रयास में जुट गई। सर्वप्रथम उन्होंने श्रावकोचित् सूत्रों का अध्ययन प्रारम्भ किया। धर्माराधना में मन पिरोया। इससे उन्हें वेदना में विश्राम मिला। शांति एवं सान्त्वना मिली। कर्मबन्धन से ऊबा मन मुक्ति की साधना की राह खोजने लगा। ठीक इसी समय आदर्श त्याग-प्रतिमा, विशद्ध संयमी शिवश्रीजी म० सा० का आपको सुयोग मिला। उनकी प्रेरणा से आसीबाई में पूर्ण साधनामय संयमी जीवन-जीने का दढ़ संकल्प बना और वि० सं० १९४७ मिगसर बदी १० को आपने दीक्षा ग्रहण की। आपने पू० शिवश्रीजी म० सा० की प्रधानशिष्या बनने का गौरव प्राप्त किया। देवश्रीजी आप प्रकृति से गम्भीर, शान्त एवं शुचिमना थीं। आपका जन्म वि. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002126
Book TitleJain Dharma ki Pramukh Sadhviya evam Mahilaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHirabai Boradiya
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Religion
File Size16 MB
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