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२५६ : जैनधर्म की प्रमुख साध्वियां एवं महिलाएं
इस परम्परा में खरतरगच्छीय साध्वीमंडल संयमनिष्ठा, विद्वत्ता, वक्तृत्व, लेखन आदि की दृष्टि से अपना विशिष्ट स्थान रखता है। आज भी इस परम्परा में, कम संख्या में होते हुए भी, उच्चकोटि की संयमसाधिकायें, वक्ता, कवयित्री, लेखिका आदि बड़ी विदुषी साध्वियाँ हैं, जो आत्म-साधना करती हुई अपने ज्ञान एवं प्रतिभा के द्वारा जन-जन तक भगवान महावीर का दिव्य सन्देश पहुँचा रही हैं।
समय के प्रवाह के साथ यह परम्परा कई शाखा-उपशाखाओं से समृद्ध बनी। प० पू० खरतरगच्छाधिपति सुखसागरजी म० के समुदाय में वर्तमान में साध्वियों की दो समृद्ध परम्परायें हैं जो पुण्यमण्डल और शिवमण्डल के नाम से प्रसिद्ध हैं। पुण्य-मण्डल की प्रमुखा हैं, पुण्यश्लोका पुण्यश्रीजी म० सा० एवं शिवमण्डल की नेत्री हैं, प० पू० स्वनामधन्या संयममूर्ति शिवश्रीजी म० सा० । दोनों का मूल एक ही है, दोनों ही प० पू० लक्ष्मीश्रीजी म० सा० की शिष्यायें हैं। लक्ष्मी श्रीजी
लक्ष्मीश्रीजी वास्तव में गच्छ के लिए लक्ष्मीस्वरूपा सिद्ध हुईं। आपकी परमकृपा का सुपरिणाम है कि आज दोनों मण्डल सुयोग्य साध्वियों से समृद्ध हैं। आप फलौदी निवासी जीतमलजो गुलेछा की सुपुत्री थीं। आपको शादी उस समय के रिवाज के अनुसार छोटी उम्र में ही झाबक परिवार में हुई । कुछ समय बाद ही अचानक आपके पति की मृत्यु हो गई। छोटी उम्र, धर्मरुचि, पारिवारिक सुविधा ने आपको सत्संग से जोड़ दिया। प० पू० खरतरगणाधीश सुखसागरजी म. सा. के त्याग, वैराग्यपूर्ण प्रवचन एवं प० पू० गुरुवर्या श्री उद्योतश्रीजी म० सा० की सत्प्रेरणा से आप विरक्ता बनी और वि० सं० १९२४ की मिगसर वदी १० को दीक्षा ग्रहण की। पू० गुरुदेव एवं गुरुवर्याश्री की निश्रा में शास्त्राध्ययन कर आपने विद्वत्ता प्राप्त की थी। आप विदुषी होने के साथ प्रखरव्याख्यात्री, तपस्विनी, संयम एवं प्रभावशालिनी थी। आपकी दो शिष्यायें थीं १.५० पू० मगनश्री जी म० सा० २. शिवश्रीजी म० सा० । खरतरगच्छ में शिवमण्डल के नाम से प्रसिद्ध साध्वी मण्डल आपकी ही परम्परा में है। सिंहश्रीजी ___ आपका नाम शिवश्रीजी और सिंहश्रीजी दोनों मिलते हैं। आपका जन्म वि० स० १९१२ में फलोदी में हुआ था। पिता का नाम लालचन्द्रजी और माता अमोलक देवी थीं। आपका जन्म नाम शेरू था । २० साल
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