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________________ २५२ : जैनधर्म की प्रमुख साध्वियां एवं महिलाएं २. स्वर्गीया चम्पाश्रीजी महाराज की शिष्याएँ जितेन्द्रश्रीजी, १२ ठाणा से विचरण कर रही हैं। ३. विचक्षण मण्डल की ५१ साध्वियाँ अनेक स्थानों पर विचरण कर रही हैं। ४. रतिश्रीजी ७ ठाणा के साथ फलोदी में विराजमान हैं। ५. स्वर्गीया पवित्रश्रीजी की शिष्याओं में दिव्यप्रभाश्रीजी ८ ठाणा के साथ हैं। अन्त में प्रवर्तिनी सज्जनश्रीजी महाराज दीर्घजीवी हों और शासन तथा खरतरगच्छ के अभ्युदय में निरन्तर सहयोग देती रहें, यही हार्दिक शुभकामना है। (२) शिवश्रीजी महाराज का समदाय उद्योतश्रीजी महाराज की लघु शिष्या थीं शिवश्रीजी । इनके सम्बन्ध में किसी भी प्रकार की जानकारी अभी तक प्राप्त नहीं हो सकी है। किंतु आपका साध्वी समुदाय भी विशाल होने के कारण यह समुदाय शिवश्रीजी के समुदाय के नाम से प्रसिद्ध है। बहुतों को दीक्षा दी होगी, किंतु जिनकी बाद में परम्परा चली वे मुख्यतः ५ हुई थीं। उन पाँचों के नाम इस प्रकार हैं : प्रतापश्रीजी, देवश्रीजी, ज्ञानश्रीजी, प्रेमश्रीजी और विमलश्रीजी। अब इन पाँचों के परिवार का संक्षिप्त ब्यौरा इस प्रकार है :(१) प्रवर्तिनी प्रतापश्रीजी शिवजीश्री के स्वर्गवास के पश्चात् ये प्रवर्तिनी बनीं। इनकी दीक्षा संवत् १९४८ मिगसर वदी दूज को हुई थी । गृहस्थावस्था में ये सूरजमलजी झाबक की पत्नी थीं और नाम ज्योतिबाई था। आपने अनेक शिष्याएँ बनाई थीं, इनमेंसे दिव्यश्रीजी, मोहनश्रीजी आदि आज विद्यमान हैं । (२) प्रवर्तिनी देवीश्रीजी इनके सम्बन्ध में किसी भी प्रकार की जानकारी प्राप्त नहीं है। प्रतापश्रीजी के स्वर्गवास के पश्चात् इस समुदाय का नेतृत्व इन्होंने सँभाला था और इन्होंने प्रतिनी पद प्राप्त किया था। चन्द्रकान्ताश्रीजी आदि कुछ साध्वियाँ इनकी परम्परा में विद्यमान हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002126
Book TitleJain Dharma ki Pramukh Sadhviya evam Mahilaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHirabai Boradiya
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Religion
File Size16 MB
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