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________________ खरतरगच्छीय सुखसागरजी महाराज के समुदाय की साध्वी : २५३ (३) प्रवर्तिनी प्रेमीश्रीजी प्रवर्तिनी देवश्रीजी के पश्चात् प्रेमीश्रीजी ने प्रवर्तिनी पद प्राप्त किया था। फलोदी में ही इनका स्वर्गवास हुआ था। इनकी परम्परा में निम्नांकित साध्वियाँ विद्यमान हैं : १. विकासश्रीजी ठाणा ३ २. विनोदश्रीजी ३. विदुषी साध्वी हेमप्रभाश्रीजी ठाणा १४ जिनके उपदेश से बीकानेर में उपधान तप हुआ था । शास्त्रों की अच्छी जानकार हैं और अच्छी वक्ता हैं। ४. सुलोचनाश्रीजी ठाणा ९ । (४) प्रवर्तिनी वल्लभश्रीजी प्रेमश्रीजी महाराज के स्वर्गवास के पश्चात् साध्वी समुदाय का नेतृत्व वल्लभश्रीजी के कन्धों पर आया, प्रवर्तिनी बनीं। वल्लभश्री जी महाराज की शिष्या थीं । ज्ञानश्रीजी प्रेमश्रीजी से बड़ी थीं किन्तु स्वर्गवास पूर्व हो जाने के कारण प्रवर्तिनी पद प्रेमश्रीजी को प्राप्त हुआ था और तत्पश्चात् वल्लभश्रीजी को । वल्लभश्री जी अच्छी विदुषी थीं, आगमों की जानकार थीं, उपदेश देने में पटु थीं। आपका स्वर्गवास भी फलोदी में हुआ था । इनकी शिष्या-प्रशिष्याओं में लगभग ३५ अभी विद्यमान हैं। विवरण इस प्रकार है १. प्रवर्तिनी जिनश्रीजी आदि ६ ठाणा २. निपुणाश्रीजी आदि ३. छत्तीसगढ़शिरोमणि मनोहरश्रीजी आदि १९ ठाणा। ये अच्छी विदुषी साध्वी हैं । इनकी समस्त साध्वियाँ व्याख्यान देने में पटु हैं। ४. कुसुमश्रीजी आदि। (५) प्रवर्तिनी प्रमोदश्रीजी प्रवर्तिनी वल्लभश्रीजी के स्वर्गवास के पश्चात् प्रवर्तिनी पद पर प्रमोदश्रीजी की स्थापना हुई । प्रमोदश्रीजी महाराज की प्रशिष्या और विमलश्रीजी की शिष्या थीं। इनका जन्म सं० १९५५ कार्तिक सुदी ५ को फलोदी में हुआ था । गोलेछागोत्रीय सूरजमलजी की पत्नी श्रेठीबाई की पुत्री थीं । इनकी दीक्षा सं० १९६४ माघ सुदी ५ को फलोदी में हुई थी। ये भी आगम साहित्य की अच्छी जानकार थीं। इनकी साध्वी परम्परा में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002126
Book TitleJain Dharma ki Pramukh Sadhviya evam Mahilaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHirabai Boradiya
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Religion
File Size16 MB
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