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________________ २२८ : जैनधर्मं की प्रमुख साध्वियां एवं महिलाएँ क्षुल्लिका शीतलमती जी संसार के भयावह दुःखों के नाश का मूलभूत हेतु धर्म है । इसीलिए संसार के दुखों से बचने के लिए इन्दौर निवासी चौथमल एवं केशरबाई की पुत्री ने वि० सं० २०२६ में जयपुर के जनसमह के मध्य आचार्यश्री देशभूषण महाराज से सद्धर्ममार्गभूत क्षुल्लिका दीक्षा ग्रहण की। साथ में शीतलमती अभिधान को प्राप्त कर श्रावक के व्रतों का यथाविधि परिपालन कर रही हैं । क्षुल्लिका शुद्धमती माताजी बुन्देलखण्ड की शोभास्थली ग्वालियर नगरी दुर्ग, उद्यान, जिनालयों मे मण्डित है । इस प्रमुख नगरी में ज्ञानमती का जन्म हुआ था । इनके पिता का नाम श्री उदयराज जैन और माता का नाम प्यारीबाई जैन है । कालान्तर में ज्ञानमती ने आचार्यश्री १०८ सुमतिसागर महाराज से क्षुल्लिका दीक्षा ली और शुद्धमती नामकरण को अलंकृत किया । वर्तमान में आप व्रत, उपवास आदि नियमों का परिपालन करती हुईं आत्मशोधन कर रही हैं । आर्यिका शुभमती जी संयम बिना जनम नर तेरा, नहीं सार्थ हो पायेगा ! विषय वासना में रत होके, दुर्गति दुःख उठायेगा || इन पंक्तियों के भाव की किञ्चित् झलक कुमारी विमला के मानस पटल पर झलकी और वह आर्यिका ज्ञानमती, आ० संभवमती, आ० जिनमती के सम्पर्क में पहुँचीं । अबोध बालिका विमला का जन्म वैशाख शुक्ला ३ सं० २००४ के शुभदिन खुरई ( सागर ) म० प्र० में हुआ था । इनके पिता श्री गुलाबचन्द्र जैन एवं माता श्रीमती शान्ति देवी हैं । सामान्य ज्ञानसम्पन्न कु० विमला ने आर्यिकारत्न ज्ञानमती जी से अनेक संस्कृत ग्रन्थों का अध्ययन किया । अनन्तर आर्यिका जिनमती के सान्निध्य में अध्ययन रत रहीं । ज्ञान के साथ विमला की वैराग्य भावना बढ़ती गयी, जिसके फलस्वरूप मगसिर वदी ३ वि० सं० २०२८ के शुभ दिन अजमेर ( राजस्थान ) के मध्य आचार्यश्री १०८ धर्मसागर महाराज से आर्यिका के महाव्रतों को ग्रहण किया । जिनमती के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002126
Book TitleJain Dharma ki Pramukh Sadhviya evam Mahilaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHirabai Boradiya
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Religion
File Size16 MB
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