________________
दिगम्बर सम्प्रदाय की अर्वाचीन आर्यिकायें : २२७ आप बाल ब्रह्मचारिणी हैं । आपका जन्म ग्रा० सिरसापुर, जिला परकणी (महाराष्ट्र) में हुआ था। आपके दीक्षागुरु आचार्य महावीरकीर्ति महाराज हैं। आपकी आर्यिका दीक्षा नासिक (महाराष्ट्र) में श्रावण शुक्ला ६ संवत् २०१५ में हुई थी। तभी से पञ्चम गुणस्थानवर्ती आचरण का यथाविधि पालन कर रही हैं। आयिका श्री शान्तिमतो माताजी ___साधनारूपी राजमार्ग पर चलने के लिए आचार और विचार दोनों ही सम्बल हैं, पाथेय हैं। इस बातको समझकर ही श्री अम्बालाल जी बड़जात्या (खण्डेलवाल) एवं फुन्दी देवी के पुत्री गुलाबबाई ने साधनारूपी सन्मार्ग पर गमन करने हेतु आचार्यश्री १०८ सन्मतिसागर महाराज से आर्यिका रूप आचार को ग्रहण किया। शान्तिमती नामधेय प्राप्त करके शान्ति की खोज में दत्तचित्त हुईं। आपका जन्म अमेरपुर (जयपुर) वि. सं० १९६७ में और आर्यिका दीक्षा मगसिर कृष्णा ६ सं० २०२८ में हुई थी। व्रत, उपवास, स्वाध्याय पूर्ण जीवन से काल यापन कर रही हैं । आर्यिका शान्तिमती माताजी
शरीर धर्मसाधना करने के लिए प्रधान साधन हैं। इस साधन के बिना साधना सम्भव नहीं है। शरीर यन्त्र रूपी साधन से लखुआ निवासी श्री नाथूराम एवं श्रीमती फूलाबाई की पुत्री कलावती ने धर्म साधना की सिद्धि का निश्चय किया। साधारण हिन्दी का परिज्ञान होने मात्र से भी कल्याण के मार्ग का अन्वेषण किया। आचार्य सुमतिसागर महाराज से क्षुल्लिका एवं आचार्यश्री कुन्थुसागर महाराज से पोरसास्थान में आर्यिका दीक्षा ग्रहण कर स्वयं को उच्च आदर्शों की खोज में लगाया। आर्यिका शीतलमती माताजी ___ माताजी का जन्म सं० १९९५ में गामड़ी (राजस्थान) के निवासी श्री निहालचन्द्र जी एवं श्रीमती जनकू बाई जैन से हुआ था । बचपन में इनका नाम ब्र० गेन्दीबाई था । इन्होंने स्त्रीपर्याय उच्छेद हेतु माघ शुक्ला ५ सं० २०१९ को क्ष ल्लिका एवं मगसिर कृष्णा १० सं० २०२३ के शुभदिन रेनवाल नगर के मध्य आचार्यकल्प श्री १०८ श्रुतसागर महाराज से आर्यिका दीक्षा ग्रहण की । वर्तमान में निर्विघ्न रीति से आर्यिका के महाव्रतों का पालन कर रही हैं।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org