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________________ दिगम्बर सम्प्रदाय की अर्वाचीन आर्यिकायें : २२९ साथ अनेकानेक ग्रन्थों का अध्ययन और मनन करती हुई व्रती जीवन बिता रही हैं । क्षुल्लिका श्रीमती जी शान्त, भद्रपरिणामी, अध्ययनशील आप का जन्म रुड़की कोल्हापुर में हुआ था । गृहस्थावस्था का नाम मालतीबाई है। आप पिता श्री नेमीचन्द्र और माता श्रीमती सोनी बाई की पुत्री हैं । आपका विवाह छीरी शिरहृदी (बेलगाँव) निवासी श्री पारिखा आदिनाथ उपाध्याय से हुआ था । किन्तु १० वर्ष के अनन्तर वैधव्य ने आ घेरा । पुत्री का भी वियोग हो गया । पति और पुत्री के वियोग से संसार के प्रति अरुचि उत्पन्न हो गयी । अतएव चैत्र शुक्ला ४ वि० सं० २०२९ तदनुसार १८|३|१९७२ के शुभ दिन राजगृह क्षेत्र पर आ० विमलसागर महाराज सेक्षुल्लिका दीक्षा ग्रहण कर ली । आर्यिका श्रुतमती जी जिनके हृदय में धर्म का सच्चा रूप होता है, वे उदार हृदय वाले व्यक्ति संसार के प्रति विरक्त भाव होते हैं । धर्महृदय सुशीलाबाई भी - संसार से अन्यमनस्क थीं । इनका जन्म १५ अगस्त १९४७ ई० के दिन कलकत्ता निवासी श्री फागूलाल जैन की पत्नी श्री बसंतीबाई की कुक्षि हुआ था | आर्यिकारत्न ज्ञानमती के सम्पर्क से वैराग्य का बीजांकुर फूट पड़ा, जिसके कारण उनके सामीप्य में अध्ययन करती रहीं और कालब्धि आने पर मगसिर कृष्णा १० वि० सं० २०३१ के दिन आचार्यश्री धर्मसागर से आर्यिका के महाव्रत ग्रहण कर स्वयं को कृतकृत्य किया । आर्यिका श्रेयांसमती माताजी मनुष्य को सदा स्मरण रखना चाहिए कि शरीर और मन की अपार शक्ति जीवन के उच्च आदर्शों की सिद्धि के लिए प्राप्त हुई है । इसी विवेक का आश्रय लेकर पूना ( महाराष्ट्र ) निवासी श्री दुलीचन्द्र एवं श्रीमती सुन्दरबाई की सुपुत्री लीलावती ने आचार्य श्री शिवसागर महाराज आर्थिक महाव्रत ग्रहण किये । लीलावती का विवाह श्री मूलचन्द्र पहाड़े से हुआ था, जो आगे चलकर मुनि श्रेयांससागर जी हुए। लीलावती का जन्म १० अगस्त १९२५ को हुआ था । मूलतः खण्डेलवाल जातीय हैं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002126
Book TitleJain Dharma ki Pramukh Sadhviya evam Mahilaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHirabai Boradiya
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Religion
File Size16 MB
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