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२०२ : जैनधर्म की प्रमुख साध्वियां एवं महिलाएँ __यशोधर चरित टिप्पणी की खंडित प्रति देहली के पंचायती मन्दिर के शास्त्र भंडार में मौजद है। यशोधर चरित में वर्णित हिंसा के दोष और अहिंसा के गण का वर्णन जैन साहित्य में बहत लोकप्रिय हआ है। उस विषय पर संस्कृत में सोमदेव कृत यशस्तिलक चम्पू से लगाकर १७वीं शताब्दी तक लगभग ३० ग्रन्थ रचे गये हैं। काव्य-कला की दृष्टि से अपभ्रंश में पुष्पदन्त कृत 'जसहर चरिउ' सर्वश्रेष्ठ है।। ___आर्यिका रणमति ने महाकवि की अपभ्रंश रचना का संस्कृत अनुवाद किया इससे उनकी विद्वत्ता का आभास होता है। आर्या रत्नमति:
संस्कृत में 'सम्यक्त्व-कौमुदी' की रचना कई विद्वान् कवियों ने की थी। इस ग्रन्थ का गुजराती में अनुवाद आर्या रत्नमति ने किया है। इस ग्रन्थ की पत्र संख्या ८९ है। यह लघु कथाओं का एक कोष है। इस ग्रन्थ में सम्यक्त्वोत्पादक आठ कथाएँ दी हुई हैं। जिन्हें अहंदास सेठ अपनी आठ पत्नियों को सुनाकर बताता है कि उसे किस प्रकार सम्यक्त्व प्राप्त हुआ और फिर पत्नियाँ अपने अनुभव सुनाती हैं। इसी के साथ प्रसंगवश अनेक अवांतर कथाएं भी यथास्थान दी गई हैं। दूसरे शब्दों में यह ग्रन्थ संस्कृत सम्यकत्व-कौमुदी का गुजराती पद्यानुवाद है। इस गुजराती ग्रन्थ की रचयित्री आर्या रत्नमति हैं ।
आर्या ने यह रास गुरुवर्या आर्या चन्द्रमती की आज्ञा से तथा आर्या विमलमती की प्रेरणा से रचा था।
यह रचना विक्रम की १६वीं शताब्दी के मध्यकाल की जान पड़ती है।
यह ग्रन्थ ऐलक पन्नालाल दिगम्बर जैन सरस्वती भवन झालरापाटण के शास्त्र भंडार में सुरक्षित है।
सोलहवीं शताब्दी में जैन साध्वियों तथा आर्यिकाओं को भाषा का
१. डॉ० हीरालाल जैन-भारतीय संस्कृति में जैन धर्म का योगदान-१० १५८ २. ब्र० पं० चन्दाबाई अभिनन्दन ग्रन्थ-पृ० ४८० ३. डॉ० हीरालाल जैन-भारतीय संस्कृति में जैनधर्म का योगदान-पृ० १७८ ४. जैनधर्म के सिद्धान्तों को जीवन में पालन करने को सम्यक्त्व प्राप्ति कहा
गया है। ५. ब्र० पं० चन्दाबाई अभिनन्दन ग्रन्थ-१० ४८०, ४८२
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