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________________ १६-१८वीं शताब्दी को जैन धर्म की साध्वियां व विदुषी महिलाएँ : २०१ का ही उल्लेख प्राप्त होता है, पर आर्यिका की शिष्या परम्परा का उल्लेख ११-१२ हजार पाण्डुलिपियों के सर्वेक्षण करने पर भी कहीं देखने में नहीं आया था । यह पहला अवसर है, जो अयिका पल्हणश्री की शिष्या परम्परा का उल्लेख एक गुटके में देखने को मिला। विनयचूला गणिनी: धर्मपरायण, काव्य प्रवीण साध्वी विनयचूला हेमरत्न सूरि की शिष्या थीं । साहित्य क्षेत्र में जहाँ एक ओर साधु समाज का बहुत बड़ा योगदान माना जाता है, वहाँ साध्वियों को इससे अछूता नहीं माना जा सकता। आगम-गच्छ के आचार्य हेमरत्न सूरि से सम्बन्धित काव्य 'फागु' को इनकी शिष्या ने ११ पद्यों में लिखा है, जिसका लेखन संवत् १५१३ ( सन् १४५६ ) के आसपास माना गया है । 'फागु' रचना में 'विदुषी' शब्द के प्रयोग से सिद्ध होता है कि 'विनयचुला गणिनी' गुणवान और काव्य-प्रवीण साध्वी थीं। ___फागु' काव्य अधिकांशतः साधुओं और श्रावकों द्वारा रचित ही पाये गये । आचार्य हेमरत्न स्रि 'फागु' एक साध्वी के द्वारा रचित होने से विशेष उल्लेखनीय है। प्रस्तुत काव्य में वसंत वर्णन या वसंत ऋतु में गाये जाने वाले गीतों की प्रधानता है जो उत्कृष्ट भावों को लिए हुए हैं। आर्यिका रणमति : महाकवि पुष्पदन्त द्वारा लिखित जसहर चरिउ नामक अपभ्रंश चरित-काव्य पर इन्होंने यशोधर चरित टिप्पणी संस्कृत में लिखी', जिसके अन्त में यह वाक्य लिखा हुआ है "इति श्री पुष्पदन्त यशोधर काव्य (""टिप्पण) अजिका श्री रणमति कृत सम्पूर्णम्"। टिप्पणी के इस वाक्य से टिप्पण ग्रन्थ की रचयित्री आयिका रणमति हैं, यह सिद्ध होता है। इसकी रचना सं० १५६६ ( ई० सन् १५०९ ) में हुई है, ऐसा मान्य किया जाना चाहिये। १. श्री अगरचन्दजी नाहटा-सुधर्मा अंक १५-१०-७०-विनयचूला रचित हेमरत्न सूरि 'फागु' (लेख) २. ७० पं० चन्दाबाई अभिनन्दन ग्रन्थ-पृ० ४८० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002126
Book TitleJain Dharma ki Pramukh Sadhviya evam Mahilaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHirabai Boradiya
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Religion
File Size16 MB
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