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________________ ८-१५वीं शताब्दी की जैन साध्वियों एवं महिलाएँ : १९७ सूरिजी ने बहुत भक्तिभाव से उस समाधिकाल में उन्हें सल्लेखना पाठ सुनाया था।' महत्तरा हेमदेवी: इस विशेष गुणवाली साध्वीजी को आचार्य जिनचन्द्र सूरिजी ने महत्तरा पद दिया था। इनके धार्मिक प्रवचनों से आकृष्ट होकर जगश्री, सरस्वती और गुणश्री श्राविकाओं ने दीक्षा ग्रहण की। इनके समय में दिल्ली में राजा मदनपाल का राज्य था। राजा सर्व धर्मों को सम्मान देते थे व धर्माचार्यों को आश्रय देते थे। तपागच्छ का आविर्भाव : आचार्य जगतचन्द्र सूरिजी ने एक समय बारह वर्ष तक उग्र आयंबिल तप किया। उससे प्रभावित होकर मेवाड़ के राजा ने इन्हें 'तपा' विरुद दिया, जिससे आगे चलकर तपागच्छ की स्थापना हुई। इस प्रकार पूर्ववर्तीगच्छों को बुरा न कहते हुए भी त्याग, तप तथा ज्ञान के प्रभाव से साधु-मार्ग को पुनः प्रतिष्ठा करने के लिए तपागच्छ की स्थापना की गई। इस सम्प्रदाय का मुख्य ध्येय संयम के नियमों का सही ढंग से पालन करना था, जिसमें उन्हें सफलता भी प्राप्त हुई। विभिन्न आचार्यों के नाम पर इस गच्छ में विभिन्न उपसम्प्रदाय भी हैं। तपागच्छ आचार्यों व साधुओं की पट्टावली में साध्वियों के बहुत कम नाम आते हैं, जिन साध्वियों ने विशेष तप, आराधना व साहित्य-सृजन किया है, उनके नाम कहीं-कहीं प्राप्त होते हैं। उस समय की साध्वी समाज का जैन समाज में क्या स्थान था, उसका स्पष्ट विवरण प्राप्त नहीं होता है। लोकाशाह की धर्म-क्रान्ति का तत्कालीन महिलाओं पर प्रभाव : इस महापुरुष का जन्म माता गंगाबाई (केशरबाई) तथा पिता हेमाशाह के यहाँ ई० सन् १४५२ में गुजरात के अरहट्टवाडा शहर में १. अगरचन्द नाहटा-खरतरगच्छ का इतिहास, पृ० १२ २. वही, पृ० १२ ३. श्री पट्टावली पराग संग्रह-पं० कल्याण विजय गणि। . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002126
Book TitleJain Dharma ki Pramukh Sadhviya evam Mahilaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHirabai Boradiya
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Religion
File Size16 MB
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