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१९६ : जैनधर्म की प्रमुख साध्वियां एवं महिलाएं __ अंचलगच्छ में अन्य बहुत सी महत्तरा साध्वियों का उल्लेख प्राप्त होता है, जिसमें तिलकप्रभा गणिनी, मेरुलक्ष्मी, महिमाश्रीजी आदि के नाम विशेष उल्लेखनीय हैं। साध्वी मेरुलक्ष्मीजी द्वारा रचित आदिनाथ स्तवन और तारंगामंडन आदि रचनाएँ प्राप्त होती हैं। साध्वी गुणश्री:
आप अंचलगच्छ के धर्ममति सूरि के समय की साध्वी थीं। आपने अपनी रचना 'गुरुगुण चौविसी' नामक गहुँली में महोपाध्यायजी के जीवन पर विशेष प्रकाश डाला है । यह रचना गुणश्री साध्वी ने सं० १७२१ में कपडवंज में चातुर्मास में की थी।
इसी प्रकार अंचलगच्छ की कई साध्वियों ने ई. सन् १५०० से १७०० के बीच में कई विद्वतापूर्ण रचनाएं की।
खरतरगच्छ का साध्वी एवं श्राविका संघ : जैन धर्म का प्रसार-प्रचार राजस्थान एवं गुजरात में व्यापक रूप से हो रहा था । गुजरात के दुर्लभ राजा के समय पाटण में वर्धमान सूरि का वर्चस्व था। उनके शिष्य जिनेश्वर सूरिजी ने 'दशवैकालिक' आगम में लिखे गये साधु के नियमों से राजा को अवगत कराया था और इसलिये राजा ने उन्हें 'खरतरगच्छ' विरुद से सम्मानित किया था । कल्याणमति गणि:
जैन साहित्य में कल्याणमति का नाम खरतरगच्छ की प्रवर्तनी के रूप में उल्लेखनीय है । संवत् १३०५ (सन् १२४८) में जिनेश्वर सूरि ने अपनी बहिन कल्याणमति को दीक्षित कर प्रवर्तनी पद की जिम्मेदारी दी। साध्वीजी के धर्मनिष्ठ व सरल स्वभाव से आकर्षित होकर कई अन्य श्राविकाओं ने भी आपके पास दीक्षित होने की इच्छा प्रकट की तथा कई महिलाओं ने संसार त्याग कर दीक्षा ग्रहण की। मरुदेवी महत्तरा :
इस तपस्विनी साध्वी ने आचार्य जिनेश्वर सूरिजो के पास ज्ञानोपार्जन किया तथा चालीस दिन का संथारा ग्रहण कर देह त्याग किया । १. जैन सत्यप्रकाश वर्ष ९, पृ० १४०१ २. सोमचन्द घारसी द्वारा सम्पादित पद्यावली, पृ० ३९० ३. अगरचन्द नाहटा-खरतरगच्छ का इतिहास--पृ० ७
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