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८- १५वीं शताब्दी की जैन साध्वियों एवं महिलाएं : १९३
मीनलदेवी :
आप गुजरात के चालुक्य नरेश जयसिंहसिद्धराज की माता तथा राजा कर्ण की रानी थीं । आप जैन धर्म पर आस्था रखती थीं । इन्होंने राजा के प्रधानमंत्री भुंजाल महेता के, जो ओसवाल जैन थे, मार्गदर्शन में कई धार्मिक कार्य किये' । राजमाता मीनलदेवी ने ई० सन् ११०० के आसपास वरूम गाँव में 'मानसून' झील बनवाई थी। जैन धर्म के प्रचार-प्रसार में राजमाता मीनलदेवी का बहुत योगदान था । माता की धार्मिकता का प्रभाव पुत्र जयसिंह पर भी बहुत था । राजा सिद्धराज ने जैन तोर्थ शत्रुजंय की यात्रा करके आदिनाथ जिनालयको बारह ग्राम समर्पित किये थे । सिद्धपुर में रायविहार नामक सुन्दर आदिनाथ जिनालय तथा गिरिनार तीर्थ पर भगवान् नेमिनाथ का मंदिर बनवाने का श्रेय राजा जयसिंह को है । ई. ० सन् १०९४-१९४३ में जैन धर्म को गुजरात में राज्याश्रय प्राप्त था । आनंद महत्तरा एवं वीरमति गणिनी :
विद्वान् जैनाचार्यों के साहित्य सृजन में कई साध्वियों ने विशेष सहायता प्रदान की है । सातवीं शताब्दी के आचार्य जिनभद्रगणी ने विशेषावश्यक भाष्य की रचना की थी । उनके भाष्य पर मलधारी हेमचन्द्रसूरि ने वि. सं. ११७५ ( ई० सन् १९१४ ) में ३७ हजार श्लोक परिमाण की महत्त्वपूर्ण टीका बनाई जिसकी रचना में सात व्यक्तियों ने योगदान दिया। इनमें से दो विदुषीं साध्वियों - 'आनन्द महत्तरा' व 'वीरमति गणिनी' की सहायता का उल्लेख ग्रन्थकार ने स्वयं किया है |
"तत्श्चाभयकुमारगणि, धनदेवगण, जिनभद्रगणि, लक्ष्मणगणि, विबुधचन्दादि मुनिवृन्द श्रीमहानन्दश्री महत्तरा, वीरमतीगणिण्या दिसाहाय्यात् रेरे निःश्चितमिदानी हता, वदम् यथेतन्तिष धाते, ततो घावत् धावत् गृहीत्, लगत, लगत इत्यादि भुवंता" ।
इससे तत्कालीन साध्वी समाज की ज्ञान गरिमा का दिग्दर्शन होता हैं जिन्होंने महान् विद्वान् पंडितों को उनके लेखन कार्य में मदद देकर
१.
(क) डॉ० ज्योतिप्रसाद जैन - प्रमुख ऐतिहासिक जैन पुरुष और महिलाएँ - पृ० २३१
(ख) प्रबन्ध चिन्तामणी ( धनपाल प्रबन्ध )
२. हिस्ट्री एण्ड कल्चर आफ द इण्डियन पीपुल - भाग ५, पृ० ४२८ ३. मुनि नथमल - - जैन दर्शन मनन और मीमांसा -- पृ० ९०
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