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________________ १९२ : जैनधर्म की प्रमुख साध्वियां एवं महिलाएँ थीं, परन्तु उनका अधिक विवरण प्राप्त नहीं होता है। कुमारपाल ने अपने धर्म गुरु हेमन्द्राचार्य को उच्च सम्मान दिया था। अतः इससे यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि समाज में तथा नागरिकों में जैन धर्म के प्रति श्रद्धा थी। श्राविकाएँ मंदिरों एवं उपाश्रयों में साध्वियों से व्याख्यान सुनने जाया करती थीं। मुनि जिन विजयजी के शब्दों में 'महर्षि हेमचन्द्र के काल में गुजरात में जैन धर्म की स्थिति केवल सुदढ़ ही नहीं हुई थी किन्तु कुछ समय के लिए वह राज्य धर्म भी बन गया था। श्रावक श्राविकाओं ने भी इस धर्म को अपना कर अपना आत्म कल्याण किया।' कुमारपाल ने अपने आध्यात्मिक गुरु हेमचन्द्र से विक्रम संवत् १२१६ ई० सन् ११६० में संघ के समक्ष जैन धर्म स्वीकार किया। भोपाला : कुमारपाल के तीन रानियों में से भोपाला देवी का ही विवरण प्राप्त होता है। राज्य प्राप्ति से पूर्व जब वे जयसिंह के डर से इधर-उधर घूमते थे तब यही रानी उनके साथ थी। ___यह रानो उनके सुख-दुःख में हमेशा साथ रही और उन्हें बहुत सहयोग दिया। रानो पर भी आचार्य हेमन्द्राचार्य का बहुत प्रभाव था। इस धर्मपरायणा रानो भोपाला देवी के एक पुत्र था, जिसका नाम लीलू था। जनश्रुति के अनुसार आचार्य हेमन्द्राचार्य के ई० सन् ११७२ में हुए स्वर्गवास के पश्चात् रानो को अपने पति की मृत्यु का भी दारुण दुःख सहना पड़ा था। १. (क) विजयमुनि-आचार्य हेमचन्द्र और सम्राट कुमारपाल-श्री रत्नमुनि ग्रन्थ-पृ० ४३३ । (ख) मुनि जिनविजयजी-राजर्षि कुमारपाल-पृ० १९ (ग) डॉ० ज्योतिप्रसाद जैन-प्रमुख ऐतिहासिक जैन पुरुष और महिलाएं पृ० २३२ २. (क) डा० जो० वुलर-हेमन्द्राचार्य-जीवन चरित्र-अ. ७, पृ० ६५ (ख) राजर्षि कुमारपाल-मुनि जिनविजयजी स्मृति ग्रन्थ-पृ० २०४ ३. देखें-चालुक्य कुमारपाल-पृ० १३४ ४. डॉ० ज्योतिप्रसाद जैन-प्रमुख ऐतिहासिक जैन पुरुष और महिलाएं पृ० २३५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002126
Book TitleJain Dharma ki Pramukh Sadhviya evam Mahilaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHirabai Boradiya
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Religion
File Size16 MB
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