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८-१५वीं शताब्दो को जैन साध्वियों एवं विदुषी महिलाएँ : १८९. हेमचन्द्र का जन्म व बाल्यकाल-गुजरात के धंधूका नामक नगरी (वर्तमानअहमदाबाद) के धार्मिक गृहस्थ चाचिग की धर्मपत्नी पाहिनो ने इस पुत्ररत्न को जन्म दिया । पुत्र जन्म से पूर्व माता को रात्रि में एक स्वप्न आया कि उसने एक चिन्तामणि रत्न अपने गुरु देवचन्द्र मुनि को भेंट किया। इस स्वप्न का अर्थ गुरु से पूछने पर उन्होंने बताया कि तुम्हें शीघ्र हो पुत्ररत्न प्राप्त होगा। यथासमय पाहिनी ने एक तेजस्वी पुत्र को (वि. सं. ११४५ ई० सन् १०८८ में कार्तिक शुक्ला पूर्णिमा ) जन्म दिया जिसका नाम चांग रखा गया । बालक चांग शनैः शनैः बडा होने लगा । एक समय माता पाहिनी बालक चांग के साथ जिन-मंदिर में देवपूजा करने गई । बालक चांग खेलते हुए उपाश्रय में देवचन्द्र मुनि के पीठ (प्रवचन देने का पाट ) पर जा बैठा । गुरु देवचन्द्र ने विशिष्ट लक्षणों वाले बालक को देखकर उसे शिष्य रूप में प्राप्त करने की इच्छा माता पाहिनी के सामने रखी एवं पाहिनो को स्वप्न की बात का स्मरण कराया। (साधओं की परम्परा में चांगदेव के दीक्षित होने को कई प्रकार की कथाएँ प्रचलित हैं )। पाहिनी इस सुझाव से अवाक् रह गई परन्तु गुरु पर श्रद्धा तथा उनके अत्यधिक आग्रह से प्रभावित होकर उसने अपनी इच्छा न होते हुए भी गुरु को अपना पुत्र भेंट कर दिया। गुरु देवचन्द्र बालक चांग को लेकर स्तम्भतीर्थ ( खंभात ) की ओर विहार कर गये और खंभात के पार्श्वनाथ मंदिर में बालक चांग को दीक्षित किया। उस समय तत्कालीन गुजरात के सुप्रसिद्ध मंत्री उदयन भी दीक्षा महोत्सव में सम्मिलित हुए । दीक्षा के पश्चात् चांगदेव का नाम 'सोमचन्द्र' रखा गया। आचार्य मेरुतुंग के वर्णन के अनुसार इस विशिष्ट बालक को देखकर उन्होंने नगर के प्रतिष्ठित श्रावकों को इकट्ठा किया और सब चाचिग श्रावक के यहाँ गये। पति को अनूपस्थिति में श्राविका पाहिनो ने संव के श्रावकों का आदरपूर्वक उचित स्वागत किया। आचार्य देवचन्द्र ने कहा, "संघ के श्रावक तथा ज्ञाति के लोग तुम्हारे पुत्र को संघ की सेवा के लिये माँगना चाहते हैं।" इस प्रकार की याचना से वह अपने को गौरवान्वित मानती हुई हर्षाश्रुओं से गद्गद् हो गई। पाहिनी ने पहले तो इस मांग को स्वीकार करने में
१. डॉ० जी० बुलर-हेमचन्द्राचार्य जीवन चरित्र-पृ० १० २. वही। ३. वही, पृ० ११
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