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________________ १९० : जैनधर्म की प्रमुख साध्वियां एवं महिलाएं अपनी असमर्थता प्रकट की तथा संघ के श्रावकों को विनयपूर्वक कहा कि "मेरे पति उपस्थित नहीं हैं और वे अन्य मत वाले हैं"' पर कौटुम्बिक श्रावकों का आग्रह वह टाल न सकी, क्योंकि वे सब तो होनहार बालक को संघ की तथा जैन शासन की प्रतिष्ठा बढाने के लिये माँग रहे थे। कुछ समय के लिये माता के हृदय में वात्सल्य और श्रद्धा का संग्राम चल पड़ा, पर अन्त में धार्मिक श्रद्धा की ही विजय हई। माता पाहिनी ने आचार्यश्री के चरणों में अपने प्रिय पुत्र को समर्पित कर अपने जीवन को धन्य बनाया । जब पिता चाचिग को इस घटना का पता चला तो वे क्रोधित हो खंभात आचार्यश्री के पास गये, पर राज्यमंत्री उदयन के वात्सल्यपूर्ण व्यवहार तथा पुत्र के उज्ज्वल भविष्य की कल्पना ने उन्हें शान्त किया और वे दीक्षा महोत्सव में भी सम्मिलित हुए । __ अतः हेमचन्द्राचार्य के बाल्यकाल के रोचक तथा परस्पर विरोधी कथानक प्राप्त होते हैं। पर इस बात का समर्थन सभी कथानक करते हैं कि देवचन्द्र मुनि ने चांगदेव को उसकी माँ से भिक्षा में मांगकर प्राप्त किया था। गुरु ने माता की वात्सल्य भावना तथा धर्मश्रद्धा का बुद्धिकौशल्य से लाभ उठाकर अपना ध्येय पूर्ण किया। प्रभावक चरित्र में स्वप्न की बात जो कही गई है, वह जैनधर्म में स्वप्नों पर प्रचलित विश्वास के कारण कही गई प्रतीत होती है। महान् व्यक्ति के जन्म के पूर्व ही माता को स्वप्न द्वारा विशेष विवरण प्राप्त होते हैं। चाचिग द्वारा पुत्र को लौटा लाने के प्रयत्न के पीछे शायद यह प्रेरणा भी रही हो कि स्वर्ग में सुख शांति की प्राप्ति के लिए पुत्र द्वारा पिण्डदान दिया जाना, भारतीय संस्कृति में आवश्यक माना गया है और इसलिये उन्होंने पुत्र की असमय दीक्षा का विरोध किया हो । मुनि सोमचन्द्र विद्याभ्यास में आशातीत प्रगति करने लगे। उन्होंने व्याकरण, अलंकार, कोष, न्यायदर्शन, ज्योतिष, त्रिषष्टिशलाकापुरुष आदि १. (क) डॉ० जी० बुलर-हेमचन्द्राचार्य का जीवन चरित्र-पृ० ११ (ख) मुनि सुशीलकुमार-जैन धर्म का इतिहास-पृ० २३३ २. डॉ० जी० बुलर-हेमचन्द्राचार्य का जीवन चरित्र-पृ० १२ ३. प्रबन्ध चिन्तामणि (धनपाल प्रबन्ध), पृ० २०७ डॉ० जी० बुलर-हेमचन्द्राचार्य जीवन का चरित्र-पृ० १०३ ४. वही, पृ० १४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002126
Book TitleJain Dharma ki Pramukh Sadhviya evam Mahilaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHirabai Boradiya
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Religion
File Size16 MB
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