________________
८-१५वीं शताब्दी की जैन साध्वियाँ एवं विदुषी महिलाएँ : १८७ आचार्य सिद्धर्षि की प्रशस्ति में भी इस प्रकार का उल्लेख प्राप्त होता है ।
अतः इस प्रकार के उच्च आलंकारिक संस्कृत ग्रंथ का संस्कृत में ही अनुवाद करना साध्वीजी की विशेष ज्ञान - शक्ति का द्योतक है ।
साध्वीजी के जीवन के बारे में अधिक विस्तृत वर्णन प्राप्त नहीं होता है, परन्तु उनके द्वारा लिखित प्रति आज भी विद्यमान है । श्रीमती :
आप विश्वविख्यात आबू के कलात्मक मंदिर के निर्माता तथा राजा भीमदेव के ( ई० सन् १०१० १०६२ ) के मंत्री विमलशाह की पत्नी थीं । इस अद्भुत स्थापत्य कला के पीछे मंत्री विमलशाह की धर्मनिष्ठा तथा उनकी धर्मपरायणा पत्नी श्रीमती के अद्भुत त्याग की कहानी जुड़ी हुई है ।
आचार्य विजयधर्मसूरि ने इस श्राविका की महिमा बताते हुए लिखा है जो यहाँ उद्धृत है
" श्राविका श्रीमती तथा विमलशाह सुख-समृद्धि के सब साधन होते हुए भी चिन्तित रहते थे । श्रीमती को कोई संतान नहीं थी । अतः उन्हें अपना जीवन निरर्थक लगता था । पति द्वारा उदासी का कारण पूछने पर पत्नी ने अपनी मनोकामना व्यक्त की । अनुश्रुति के अनुसार विमलशाह ने अपनी इष्ट देवी अम्बिका की तोन दिन तक अन्न-जल त्यागकर आराधना को । मंत्रीश्वर को भक्ति तथा उनके पुण्य प्रभाव से तीसरे दिन अर्धरात्रि का देवी ने दर्शन दिया तथा वरदान माँगने को कहा । मंत्री ने दो वर - एक पुत्र प्राप्ति तथा दूसरा आबू पर्वत पर मन्दिर का निर्माण - माँगे । इस पर देवी ने कहा, "तुम्हारा पुण्य संचय एक वरदा जितना ही है" । मंत्रीश्वर ने यह बात अपनी अर्द्धांगिनी से जाकर कही ।
१. (क) आ० विजयधर्म सूरि - आबू - पृ० २४
( ख ) अगरचन्दजी नाहटा - श्वेताम्बर जैन महिलाएँ - ब्र० प० चन्द्राबाई अभिनन्दन ग्रन्थ, पृ० ३३४
(ग) डॉ० ज्योतिप्रसाद जैन - प्रमुख ऐतिहासिक जैन पुरुष और महिलाएँपृ० २३०
२. आ० विजयधमं सूरि-आबू - पृ० २४
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org