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१८६ : जैनधर्म की प्रमुख साध्वियां एवं महिलाएं के संस्कृत के प्रकाण्ड विद्वान् सिद्धर्षि सूरि के विशाल ग्रन्थ 'उमिति भवप्रपंच कथा' का संस्कृत अनुवाद बहुत विद्वत्तापूर्ण व रोचक ढंग से किया था। इस मनोहारी कथा की रचना सिद्धर्षि महर्षि ने संवत् ९६२ में श्रीमाल नगर में पूर्ण की थी। यह श्रीमाल नगर गुर्जरों का प्रधान शहर था। सिद्धर्षि सूरि ने इस आलंकारिक रूपक कथा को इसी नगर में लिखा था, ऐसा उल्लेख प्राप्त होता है।
इस ग्रन्थ में भावात्मक संज्ञाओं को मूर्तिमान स्वरूप देकर विविध धर्मकथायें व नाना अवांतर कथाएँ कही गई हैं। उदाहरण के लिये नगर का नाम निवृत्तिपुर है। राजा कर्मपरिणाम, राना काल परिणति, साधुसदागम व अन्य व्यक्ति संसारी, निष्पुण्यक आदि नाम भी रूपकात्मक हैं। इस कथा में ऐसे रोचक वर्णन हैं कि अंग्रेज कवि जॉन बनियन कृत 'पिलग्निम्स प्रोग्रेस' का अनायास स्मरण हो आता है।
इस आलंकारिक ग्रंथ को संस्कृत भाषा में लिखकर गुणासाध्वी ने जैन धर्म की साध्वियों में एक कीर्तिमान स्थापित किया है तथा अनेक साध्वियों की प्रेरणा का स्रोत बनी हैं । इतने प्रसिद्ध विद्वान के ग्रन्थ को संस्कृत में लिखने का साहस करके साध्वोजी ने साहित्यिक क्षेत्र में एक कीर्तिमान स्थापित किया है।
नोट : दसवीं शताब्दी में साध्वो द्वारा लिखित यह संस्कृत ग्रन्थ आज
भी भंडारकर ओरियण्टल रिसर्च, इन्स्टीट्यूट पूना में सुरक्षित है जिसके हस्तलिखित अक्षर इतने सुन्दर हैं कि मानो टाइप
किये गये हों। सम्मेदशिखर तीर्थ-दर्शन विभाग १ में साध्वीजी के बारे में निम्न श्लोक लिखा हुआ प्राप्त होता है :
प्रथमादर्शलिखिता, साध्वी श्रुतदेवतानुकारिण्या दुर्गस्वामिगुरूणां, शिष्यका गुणाभिवया ।
१. (अ) मुनि सुशीलकुमार-जैन धर्म का इतिहास, पृ० २१०-२१२
(ब) श्रीमती स्टीवेन्सन-हार्ट आफ जैनिज्म, पृ० ८१ २. ( क ) हीरालाल जैन-भारतीय संस्कृति में जैन धर्म का योगदान,.
पृ० १७४ ( ख ) जैन प्रकाश १५, अक्टूबर, १९६९ ( बम्बई)
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