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________________ १८० : जैनधर्म को प्रमुख साध्वियां एवं महिलाएं कंतीदेवी: साहित्य के क्षेत्र में अपना अद्वितीय स्थान रखनेवाली यह महिला विष्णुवर्धन के राज्यकाल में हुई थी। प्रसिद्ध कवयित्री होने के कारण द्वारसमुद्र गांव के राज दरबार में कंतीदेवो को सम्माननीय और उच्च पद प्राप्त था। राज दरबार के सुविख्यात कवि पंप के साथ लोहा लेने में आपको अपूर्व सफलता प्राप्त हुई थी। राजकवि पंप ने कंती को परास्त करने को बहुत कोशिश की पर उसमें सफलता नहीं मिली। आपने अपने काव्य साहित्य से भारतीय नारी के गौरव और धर्म की रक्षा को तथा आश्चर्यजनक काव्य-शक्ति द्वारा जैन नारियों को नई दिशा प्रदान को। भीमादेवी : भीमादेवी विजयनगर के राजा देवराय की धर्मपरायणा पत्नी थीं। श्रवणबेलगोल के एक शिलालेख से प्रकट होता है कि वे जैन धर्म को बहुत मानती थीं। भीमादेवी ने स्वयं का बहुत-सा द्रव्य देकर मंदिर बनवाया तथा शान्तिनाथ की मूर्ति को श्रवणबेलगोल में स्थापित करवाया। विजयनगर के राजा कांग ने राज्य को अपने नियंत्रण में लिया और जैन धर्म का प्रचार किया । विजयनगर के राजा बुक्का ने निम्न प्रकार की घोषणा अपने राज्य में करवाई थी .__ 'जब तक चाँद व सूर्य रहेगा। तब तक जैन तथा वैष्णव दोनों संप्रदाय का समान आदर राज्य में रहेगा। वैष्णव तथा जैन एक ही धर्म है, इन्हें समान मान्यता देना चाहिये'२ । ___दक्षिण भारत में धर्म के प्रचार-प्रसार में राजा तथा उनके मंत्रीगणों ने तो सर्व प्रकार की सहायता दी परन्तु मुनि तथा आचार्यों की प्रेरणा से महिलाओं ने अद्भुत कारीगरोवाले एवं सुन्दर मन्दिर बनवाकर जो स्थापत्य कला में योगदान दिया है उसकी दूसरी मिसाल भारतीय इतिहास तथा अन्य देशों के इतिहास में मिलना असंभव है । ऐशो आराम तथा भोग के सम्पूर्ण साधनों को त्याग कर धर्म तथा तपनिष्ठ होकर जैन धर्म के सिद्धान्तों को अपनाकर जीवन में चरितार्थ करने का जो कार्य दक्षिण भारत की महिलाओं ने किया उससे जैन धर्म ही नहीं, भारत के सर्व धर्मसम्प्रदाय गौरवान्वित हुए हैं। १. चन्दाबाई अभिनन्दन ग्रन्थ, पृ० ५५०-५१ २. बी० एल० सोलेतर-विजयनगर का इतिहास-पृ० १७० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002126
Book TitleJain Dharma ki Pramukh Sadhviya evam Mahilaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHirabai Boradiya
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Religion
File Size16 MB
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