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दक्षिण भारत की जैन साध्वियों एवं विदुषी महिलाएँ : १७३ चाहिये।' राजा को अन्यमनस्क तथा उद्विग्न देख पुनः रानी बोली, 'राजन्, जरा सोचिये कि यह राजमहल की अटारी कितने दिन के लिए है, यह राग-रंग अनित्य है, किन्तु यह जिन प्रतिमा तो संसार सागर से पार लगाकर निरन्तर अभय सुख देने वाली है।' यह सुनते ही कट्टर विद्रोही राजा की मनोभावना में परिवर्तन हो गया। उसने भी पत्नी की प्रेरणा से जैन धर्म अंगीकार किया एवं राज्य में जैन धर्म के प्रचारप्रसार के लिये काफी धन खर्च करके मन्दिर, जिनालय आदि बनवाये ।
कालियका :
चालुक्य त्रिभुवनमल्ल के दण्डनायक सूर्य की भार्या, स्वयं ज्येष्ठ दण्डनायकिति कालियका बड़ो धर्मात्मा महिला थी। उसने ई० सन् ११२८ में सेम्बूर में पार्श्वनाथ भगवान् का एक अति सुन्दर जिनालय बनवाकर उसके लिए स्वगुरु शान्तिशयनपण्डित को प्रभूत भूदान दिया था। अक्कादेवी:
अक्कादेवी चालुक्य वंशी राजा सत्याश्रय की बहिन एवं दशवर्मन की पुत्री थीं। राज्य कार्य में दक्ष होने के कारण वे राज्य के एक प्रान्त की गवर्नर नियुक्त की गई थीं (ई. सन् १०३७)। राज्य शासन में सहयोग देने के लिये उनके साथ सात मंत्रियों की एक कौंसिल थी, जो प्रान्त की व्यवस्था सुचारु रूप से करते थे जिसमें अक्कादेवी स्वयं राजस्व मंत्री थीं।
इनके शासन-काल में राजस्व मंत्री को ही धार्मिक कार्य के लिये सरकारी जमीन बिना मूल्य देने का अधिकार था। इसी प्रकार राजस्व अधिकारी को यह भी आदेश था कि सरकारी कर वसूली में से कुछ धनराशि धार्मिक कार्यों के लिये दी जाय। कुछ उच्च अधिकारियों
१. ब्र० पं० चन्दाबाई अभिनन्दन ग्रन्थ, पृ० ५२८ २. डॉ० ज्योतिप्रसाद जैन-प्रमुख ऐतिहासिक जैन पुरुष और महिलाएं
पृ० १२६ ३. हिस्ट्री एण्ड कल्चर ऑफ इंडियन पीपुल, भाग ५, पृ० २७८ ४. हिस्ट्री एण्ड कल्चर आफ इण्डियन पीपुल, पृ० १६७, २७९
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