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१७४ : जैनधर्म की प्रमुख साध्वियां एवं महिलाएँ को धार्मिक कार्यों के लिये गाँव तक दे देने के अधिकार राज्य की ओर से प्राप्त थे।'
राज्य शासन द्वारा धार्मिक कार्य में सहूलियत प्राप्त होने से कई धनाढ्य तथा मध्यम स्थिति के नागरिक अपने धन को धार्मिक कार्यों में लगाकर उसका सदुपयोग करते थे। ऐसे ही एक दान का वर्णन एक शिलाफलक पर प्राप्त हुआ है।
चालुक्य नरेश विक्रमादित्य के समय सिंगवाड़ी क्षेत्र की नालिकब्बे नाम की महिला ने अपने स्वर्गीय पति को स्मृति में एक मन्दिर का निर्माण करवाया। इस मन्दिर के खर्च के लिये राज्य द्वारा भूमि तथा अन्य वस्तुएँ दी गई जिसका शिलालेख में उल्लेख प्राप्त होता है।
केतलदेवी :
होयसल राजवंश के राजा आहवमल्ल (ई० सन् १०४२-१०६८) के शासन-काल में यह महिला 'पोन्नवाड अग्रहार' की शासिका थीं। इन्हें सोमेश्वर की महारानी केतलदेवी के नाम से सम्बोधित किया जाता था। इन्होंने त्रिभुवन-तिलक जिनालय में कई उप-मन्दिरों का निर्माणं ई० सन् १०५४ में करवाया। उसके खर्च के लिये महासेन मुनि को दान में बहुतसा धन दिया ताकि मन्दिर का खर्च सुविधा से चल सके ।
प्रसिद्ध अर्हत् शासन का स्तम्भ चाकिराज रानी का दीवान था। इसी राज्य के बेल्लारी जिले का कोंगली नामक स्थान पुरातन काल से एक प्रसिद्ध जैन केन्द्र रहा था। यहाँ तभी से एक महत्त्वपूर्ण जैन विद्यापीठ की स्थापना हुई थी। इस महत्त्वपूर्ण जैन विद्यापीठ में कई शिलालेखों का संग्रह किया गया था। शान्तलदेवी ____ आप होयसल वंश के महाराजा विष्णुवर्धन की रानी एवं श्रमणोपा
१. हिस्ट्री एण्ड कल्चर आफ इण्डियन पीपुल पृ० २७९ २. महावीर जयन्ती स्मारिका-जयपुर, सन् १९७५, स० राजस्थान जैन सभा,
__ जयपुर पृ० ३-९ -- ३. डॉ० ज्योतिप्रसाद जैन-प्रमुख ऐतिहासिक जैन पुरुष और महिलाएं-पृ०
१२०, ब्र० पं० चन्दाबाई स्मृति ग्रन्थ
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