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१७२ : जैनधर्म की प्रमुख साध्वियां एवं महिलाएं
कई शिलालेखों में भी दानचिन्तामणि की महिमा विशेष रूप से अंकित है। बम्बई-कर्नाटक शासन-संग्रह द्वारा प्रकाशित ५२ तथा ५३ नम्बर वाले शिलालेख अतिमव्बे से सम्बद्ध हैं।' इस शिलालेख में तत्कालीन महाकवि रत्न द्वारा अजितपूराण का यह वर्णन भी है कि 'जब अतिमव्बे श्रवणबेलगोल दर्शन को गई थीं तो वहाँ उनके प्रभाव से अकाल वृष्टि हई थी।' इसी प्रकार लेख में इनकी महिमा का उल्लेख इस प्रकार है, 'अतिमब्बे राजा के कहने पर पवित्र जिन प्रतिमा को मस्तक पर धारण करके जब निर्भय होकर गोदावरी में उतरी तो इसकी महिमा से नदी का प्रवाह एकदम रुक गया ।२
तत्कालीन कवियों ने दानचिन्तामणि अतिमब्बे को कई उपाधियों से विभूषित किया है तथा शिलालेख में जिन प्रतिमाओं को निर्माणिका के रूप में उनका सादर स्मरण किया है।
वस्तुतः दानचिंतामणि अतिमन्ने एक आदर्श जैन महिला थी, जिसका स्मरण कर आज भी नारी जाति का मस्तक गौरवान्वित होता है। जाकलदेवी :
आप चालुक्य राजा त्रिभुवनमल्ल विक्रमादित्य की धर्मपत्नी थीं। जाकलदेवी का जन्म जैन कुल में हुआ था। इसका प्रमाण गुलबर्गा जिले के शिलालेख से प्राप्त होता है। इन्होंने जैन शासन की अपार सेवा की थी। ___ जाकल देवी के पति चालुक्य राजा त्रिभुवनमल्ल जैन धर्म के विरोधी
थे और जैन मूर्तियों तथा जैन बिम्बों से घृणा करते थे। एक समय एक “शिल्प कलाकार ने एक अतिशय सुन्दर, भव्य और विशाल जिन प्रतिमा तैयार कर राजा के सम्मुख उपस्थित किया। रानी उस हृदयहारिणी प्रतिमा के दर्शन कर भगवद्भक्ति में रम गई, पर पति चालुक्य राजा की मखाकृति से रानी उसके हृदय के भावों को ताड़ गई और विनयपूर्वक राजा से बोली, 'हे राजन्, इस प्रकार की रमणीय, मनोहर, विशाल
और शान्तमुद्रा-सम्पन्न मूर्ति अपने राजदरबार में अवश्य होनी १. एस० आई० आई० ११-१, बम्बई-कर्नाटक इंसक्रिप्शन्स २. (क) ब्र० पं० चन्दाबाई अभिनन्दन ग्रन्थ, पृ० ५२३ (ख) डॉ० ज्योतिप्रसाद जैन-प्रमुख ऐतिहासिक जैन पुरुष और महिलाएँ
पृ० ११८
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