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________________ १७० : जैनधर्म की प्रमुख साध्वियां एवं महिलाएँ नित्यवर्ष ई० सन् ९६७-९७२) राष्ट्रकूट सिंहासन पर बैठा। इस नरेश के सामन्त पड्डिग ने अपनी धार्मिक भार्या जक्किसुन्दरी द्वारा काकम्बल में निर्मित भव्य जिनालय के लिये दो ग्राम प्रदान किये थे (ई० सन् ९६८) । इनके गुरु कवलिगुणाचार्य की प्रेरणा से साधु-साध्वियों के ठहरने के लिए एक वसति बनवाई गई थी। यह महिला राजवैभव तथा विलासिता से दूर रहकर धर्म ध्यान पर श्रद्धा रखती थी। माललदेवी: यह कदम्ब कुल के महाराजा कीर्तिदेव की परम जिन भक्त और धर्मपरायण अग्रमहिषी थी । कुप्पडूर नाम के नगर में इन्होंने अतिभव्य पार्श्वदेव चैत्यालय का निर्माण कराकर आचार्य पद्मनन्दि के सिद्धान्त से उसकी प्रतिष्ठा करवाई । जिनेन्द्रदेव की नित्य पूजा एवं साधुओं के आहार आदि की व्यवस्था के लिये स्वयं महाराज कीर्तिदेव से एक गाँव प्राप्त कर गुरु को (समर्पित) दान दिया था। चालुक्य वंश अतिमव्वे : दसवीं शताब्दी के अन्तिम चरण में दक्षिण भारत में दानवीरा अतिमब्बे का नाम जैन धर्म में चमक उठता है । विशिष्ट गुण तथा उत्कृष्ट दान के कारण जैन नारियों के इतिहास में इन्होंने उच्च स्थान प्राप्त किया है। आपके पति नागदेव चालुक्य राजा आहवमल्लदेव के सेनापति थे। आपका गृहस्थाश्रम आनन्दमय था। परन्तु निर्दयी विधि को सहन नहीं हुआ व अनायास ही पति की मृत्यु से अतिमब्बे का जीवन अन्धकारमय हो गया। उस समय की प्रथा के अनुसार नागदेव की दूसरी पत्नी 'गंडमब्बे' पति के साथ सतो हो गई। पर सती प्रथा को जैन धर्म के सिद्धान्तों के विरुद्ध समझ कर अतिमव्बे ने ऐसा करना उचित नहीं समझा। वह अपने एकमात्र पुत्र अण्णिगदेव की रक्षा करती हुई श्राविका व्रतों का पालन १. (क) साउथ इण्डियन हिस्ट्री एण्ड कल्चर-पृ० १११ (ख) ब्र० पं० चन्दाबाई अभिनन्दन ग्रन्थ-पृ० ५५३ २. डॉ० ज्योतिप्रसाद जैन-प्रमुख ऐतिहासिक जैन पुरुष और महिलाएँ पृ० १२५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002126
Book TitleJain Dharma ki Pramukh Sadhviya evam Mahilaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHirabai Boradiya
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Religion
File Size16 MB
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