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दक्षिण भारत की जैन साध्वियां एवं विदुषी महिलाएँ : १६९ जैसी रूपवती, अरून्धती जैसो धर्मप्रिया और शासन देवी जैसी जिनेन्द्र भक्त बताया है।
राष्ट्रकूट चन्द्रवल्लभा :
चन्द्रवल्लभा राष्ट्रकूट नरेश अमोघवर्ष रासकृता की पुत्री तथा राजा राजमल द्वितीय की पत्नी थी। अपने पिता के पदचिह्नों पर चलनेवाली इस राजकुमारी ने अपनी दृढ़ आस्था के कारण जैन धर्म के प्रचार-प्रसार में विशेष सफलता प्राप्त की। अपने गुरु शुभचन्द्र सिद्धान्तदेव की प्रेरणा से एक विशाल जैन प्रतिमा की स्थापना करवाई, जिसका उल्लेख श्रवणबेलगोल के शिलालेख नं० ४८९ में मिलता है। पति के समान चन्द्रवल्लभा भी बारह सौ (१२००) ब्राजिल के उच्च पदाधिकारी के पद पर कार्य करती थी, जो उस समय के इतिहास में गौरवशाली पद माना जाता था। अपने व्यक्तिगत जीवन में व्रतों का पालन करते हुए अन्त समय से विधिपूर्वक व्रत धारण कर शरीर का त्याग किया। वोरता तथा पराक्रम से युक्त यह महिला जिनेन्द्र शासन की भक्त तथा अपनी योग्यता एवं सौन्दर्य के लिए प्रसिद्ध थी। इसने सात-आठ वर्ष तक अपने प्रदेश का सुशासन किया। अन्त में ई० सन् ९१८ में वह रुग्ण हो गई तो शरीर और संसार को क्षण भंगुर जानकर, अपनी पुत्री को सम्पत्ति एवं पदभार सौंप दिया। स्वयं बन्दनि तीर्थ की वसति में जाकर श्रद्धा के साथ सल्लेखना व्रत पूर्वक देह का त्याग किया। जक्किसुन्दरी: __ कृष्णराज तृतीय की मृत्यु के पश्चात् उनका लघुभ्राता (खोट्टिंग १. (क) परमानन्द शास्त्री-श्रमण संस्कृति में नारी-ब्र० पं० चन्दाबाई
अभिनन्दन ग्रन्थ-पृ० ४७७ (ख) डॉ० ज्योतिप्रसाद जैन-प्रमुख ऐतिहासिक जैन पुरुष और महिलाएं
पृ० ८४-८५ (ग) चन्द्रगिरि पर्वत के शिलालेख नं० ६१, (१३९) २. (क) साउथ इण्डियन हिस्ट्रो एण्ड कल्चर-पृ० १११
(ख) ब्र० पं० चन्दाबाई अभिनन्दन ग्रन्थ, पृ० ५५१ (ग) डॉ० ज्योतिप्रसाद जैन-प्रमुख ऐतिहासिक जैन पुरुष और महिलाएँ
पृ० १०८
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