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________________ १६६ : जैनधर्म की प्रमुख साध्वियां एवं महिलाएँ इन सभी बातों को देखकर साधु समझ गया कि जब पति-पत्नी में पूर्ण एकता हो और लेश मात्र भी सन्देह न हो, तभी वैवाहिक जीवन सुख का सागर बन सकता है । यह सब देख साधु बोले, 'मैं आपके सुखो जीवन का मर्म समझ गया हैं।' इतना कहकर मुनि अपने स्थान पर चले गये। पति के प्रति पत्नी की श्रद्धा का यह अपूर्व उदाहरण है । इसी प्रकार धर्म के सिद्धान्तों पर जब तक पूर्ण विश्वास न हो, तब तक धर्म. आराधना कठिन है। ई० सन् की दूसरी सदी में चोल तथा चेदि राज्य में जैन धर्म का प्रभाव था। त्रिचुरापल्ली के राजा किल्लीकवर्मन के कनिष्ठ पुत्र शान्तिवर्मन ने जैन धर्म के सिद्धान्तों को जीवन में अपनाया तथा मुनि दीक्षा ग्रहण की। यही मुनि दक्षिण भारत में आचार्य समन्तभद्रस्वामी के नाम से विख्यात हुए। पामव्वे पेदियर दोरपय्य की ज्येष्ठ रानी तथा बुतुंग की बड़ी बहन थी । नाणव्वे कन्ति नाम की तत्कालीन एक विद्वान् आर्यिका की प्रेरणा से प्रेरित होकर पामव्वे ने भी संसार त्याग प्रव्रज्या ग्रहण की थी। इस राजमहिषी ने दीक्षित होकर ३० वर्षों तक पाँच महाव्रतों का पालन किया तथा कर्मों का क्षय कर साध्वी जीवन को उज्ज्वल बनाया और अन्त समय में समाधिपूर्वक देह-त्याग किया। औवे : यह महिला चेर राज्य की एक जैन राजकुमारी थो, जो आज सुप्रसिद्ध प्राचीन तमिल कवयित्री के रूप में विख्यात हैं । ये जीवन पर्यन्त बाल ब्रह्मचारिणी रहीं और अपनी निःस्वार्थ समाज सेवा, सुमधुर वाणी और नीतिपूर्ण उपदेशों के लिए आज भी तमिल भाषा-भाषियों के लिये 'माता औवे' (आर्यिका माँ) के रूप में स्मरणीय एवं पूज्यनीय बनी १. (क) डॉ० ज्योतिप्रसाद जैन-प्रमुख ऐतिहासिक जैन पुरुष और महिलाएं पृ०८० (ख) ब्र० पं० चन्दाबाई अभिनन्दन ग्रन्थ-पृ० ६९ २. डॉ० ज्योतिप्रसाद जैन-प्रमुख ऐतिहासिक जैन पुरुष और महिलाएँ पृ० ७० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002126
Book TitleJain Dharma ki Pramukh Sadhviya evam Mahilaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHirabai Boradiya
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Religion
File Size16 MB
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